निर्जला एकादशी पर दान देना मोक्षदायी

कोरोना वायरस ने जहां हर किसी को नुक्सान पहुंचाया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 05:02 PM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 06:38 PM (IST)
निर्जला एकादशी पर दान देना मोक्षदायी
निर्जला एकादशी पर दान देना मोक्षदायी

रोहित कुमार, श्री मुक्तसर साहिब

कोरोना वायरस ने जहां हर किसी को नुक्सान पहुंचाया है। वहीं 68 दिन तक लॉकडाऊन रहने के कारण यहां लोगों की दुकानें बंद रही। अब धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आने लगी है। जिसके तहत अब बाजार पूरी तरह से खुल चुके हैं। आज निर्जला एकादशी का त्योहार होने के कारण बाजार में भीड़ है। फल विक्रेताओं, मटके, शरबत आदि बेचने वालों को उम्मीद है कि उनका कार्य चलेगा क्योंकि इस दिन लोग दान पुन्य करते है। लोगों का रुझान त्योहार के प्रति नहीं है जिस कारण गरीब वर्ग के लोगों में मायूसी छायी हुई है।

जीवन शर्मा ने बताया कि इस व्रत के कारण जहां हमें पुण्य मिलता है। उन्होंने कहा कि हमें इस दिन अधिक से अधिक दान देना चाहिए। इस दिन दान देने से जहां भगवान विष्णु प्रसन्न होते है वहीं हमारे मोक्ष के द्वार भी खुलते है। उन्होंने लोगों को कहा कि वह मटके और पखियां खरीदें ताकि जो भी गरीब लोग इनको बेचने के लिए बाजार में आए है वहीं भी अपने बच्चों के खाने के लिए कुछ न कुछ खरीद लें। उन्होंने कहा कि गरीब से खरीदारी करना भी पुण्य है। इनसेट

व्रत के फायदे

पंडित आदेश कुमार तथा पंडित पूर्ण चंद जोशी ने बताया कि व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी है जो 2 जून को है। इस एकादशी को भीमसेनी, भीम एकादशी और पांडव एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत में जल तथा अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। इसमें कठोर नियमों का पालन करना होता है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत जो भी रखता है उसे 24 एकादशी के व्रतों के बराबर पुण्य मिलता है। इस व्रत को पूर्ण करने भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है। जीवन में चल रही बाधाओं से मुक्ति मिलती, रोग दूर होते हैं, घर में सुख समृद्धि बनी रहती है, लक्ष्मी का वास होता है।

व्रत की विधि

यह व्रत पंचांग के अनुसार आरंभ करना चाहिए। एकादशी का व्रत दशमी की तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है। इस व्रत में सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्य उदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।

पूजा विधि

सुबह स्नान करने के बाद पूजा स्थान को शुद्ध करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रिय वस्तुओं का अर्पण और भोग लगाएं। पीले वस्त्र और पीले रंग के मिष्ठान का भोग उत्तम माना गया है। इसके बाद पूजा आरंभ करें और व्रत का पालन करें।

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