लाहौर में पाकिस्तान सरकार ने लाला लाजपत राय के बलिदान स्थल पर लगाया यादगारी पत्थर
पाकिस्तान सरकार ने लाला लाजपत राय के बलिदान स्थल पर आखिरकार यादगारी पत्थर लगा दिया है। यह यादगारी पत्थर जहां लगाया गया है वहां अंग्रेजों ने उन पर लाठियां बरसाई थीं। साइमन कमीशन के विरोध के दौरान अंग्रेजों ने लाठी बरसाई थीं।
मोगा, [सत्येन ओझा]। लाहौर में शहीद लाला लाजपत राय की कोठी को राष्ट्रीय स्मारक बनाने के लिए कई वर्षों से चलाए जा रहे अभियान को बड़ी सफलता मिली है। पाकिस्तान सरकार ने लाहौर में लाला जी के बलिदान स्थल पर यादगारी पत्थर लगाया है। इस पर लिखा गया है कि 'स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए यहां शहीद हुए थे।'
लाहौर के माल रोड पर अंग्रेजों ने लाला जी पर बरसाईं थी लाठियां
यह पत्थर 17 नवंबर को लाहौर के माल रोड पर उसी जगह रखा गया है, जहां साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लालाजी पर अंग्रेजों ने लाठियां बरसाई थीं। पाकिस्तान के इस कदम से लाला जी को विश्व हीरो के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी। जहां यादगारी पत्थर लगाया गया है, वह स्थान टाउन हाल क्लब के निकट माल रोड पर है। लाला जी की कोठी 'इंसाफ' भी माल रोड पर ही स्थित है।
बलिदान स्थल पर लगाया यादगारी पत्थर। (फाइल फोटो)
पाकिस्तान में शहीद-ए-आजम भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन एडवोकेट इम्तियाज रशीद कुरैशी पिछले कई सालों से लाहौर में लाला जी की उस कोठी को कब्जा मुक्त कराने के लिए लड़ाई लड़ रहे थे, जिसमें लालाजी लाहौर बार एसोसिएशन के महासचिव के रूप में रहते थे।
एडवोकेट कुरैशी ने पाकिस्तान सरकार को आठ माह पहले एक मांग पत्र भी दिया था। इसमें लाला जी की कोठी को कब्जा मुक्त कर उसे राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग की गई थी। एडवोकेट कुरैशी के प्रयास के बाद पाकिस्तान सरकार का एक कदम दोनों देशों में सद्भाव का संदेश देगा।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन एडवोकेट इम्तियाज रशीद कुरैशी।
कुरैशी का कहना है कि पाक की एक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड ने चंद रुपयों के लिए लालाजी की हवेली को लीज पर दे दिया था, जिस पर बाद में लोगों ने कब्जा कर लिया था। 17 नवंबर, 1928 को साइमन कमीशन का विरोध करते हुए अंग्रेजों की लाठी से घायल लाला जी शहीद हो गए थे। देश की आजादी की खातिर जिस तरह उन्होंने लड़ाई लड़ी, वह उन्हेंं दुनिया का बड़ा हीरो बनाता है। हवेली का 'इंसाफ' के नाम से उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 24 दिसंबर, 1929 को किया था।