अब रंग-बिरंगे मिट्टी के करवे की बढ़ी डिमांड
पूरे वर्ष भर सुहागिन महिलाएं करवा चौथ पर्व का बेसब्री से इंतजार करती हैं। करवाचौथ का दिन आने पर वे अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। इस बार 24 अक्टूबर दिन रविवार को करवा चौथ का पर्व मनाया जा रहा है। इसके पर्व में करवे का बड़ा ही महत्व होता है।
राज कुमार राजू,मोगा : पूरे वर्ष भर सुहागिन महिलाएं करवा चौथ पर्व का बेसब्री से इंतजार करती हैं। करवाचौथ का दिन आने पर वे अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। इस बार 24 अक्टूबर दिन रविवार को करवा चौथ का पर्व मनाया जा रहा है। इसके पर्व में करवे का बड़ा ही महत्व होता है। इस पर्व को अभी तीन दिन शेष है। इसलिए कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी के करवे बनाने में मशगूल हैं। हालांकि कुछ लोग चांदी, पीतल व स्टील के करवा का प्रयोग भी करते हैं, लेकिन अभी भी अधिकांश महिलाएं मिट्टी के करवा से ही पूजन शुभ मानती हैं और उसका ही उपयोग करती हैं। देखा जाए तो पिछले दो तीन वर्षों में मिट्टी के करवा दीपक आदि की डिमांड बढ़कर सामने आई है। त्योहार सीजन को देखते हुए कुम्हार भी नए नए डिजाइन में आकर्षक करवे तैयार करने में जुटे हुए हैं। दिन रात चल रहा करवा तैयारी का काम
मिटटी के बर्तन तैयार करने वाले कुम्हार रवि कुमार व खुशी राम प्रजापति ने बताया कि सभी कस्बों में कुम्हार लोग करवा की तैयारियों में दिन रात एक करके काम में जुटे हुए है। उनका कहना है कि संपन्न घरानों में तांबे व फूल धातु के करवा का प्रचलन बढ़ने के बाद भी मिट्टी के करवों को अभी भी प्राथमिकता दी जा रही है। करवाचौथ के त्यौहार में मात्र तीन दिन का समय शेष है। ऐसी हालत में करवा तैयार करने, पकाने व रंगने का काम व्यापक स्तर पर चल रहा है। पूरा परिवार मिट्टी के करवों को तैयार करने व रंगने में मशगूल दिखा। उन्होने बताया कि पूजन में मिट्टी के करवे का महत्व बरकरार रहने से इनकी मांग ठीक ठाक रहती है। यह काम उनका पुश्तैनी कामकाज है, लेकिन इलाके में मिट्टी की उपलब्धता कम होने से बाहर से मंहगी दर पर मिट्टी मंगानी पड़ती है। इस बार करवे की कीमत होल सेल में सिपल करवा 15 रुपये से 30 रुपये प्रति जोड़ी तक मिलेगा। पूरे परिवार को लगकर करना होता है काम
करवा तैयार कर रहे कुम्हारों का कहना है कि करवाचौथ में मिट्टी के करवों का काफी महत्व है। कई दिन पूर्व से ही वह लोग इसके निर्माण में लग जाते है। इसके साथ ही इन पर रंगरोगन कर इन्हें सुंदर बनाया जाता है। जबकि उनकी पत्नी व बच्चे करवों को रंगने व डिजाइनर बनाने के काम में जुटे दिखे। उन्होंने बताया कि करवा बनाने, पकाने व रंगने के साथ ही मजदूरी का खर्च यदि जोड़ दिया जाए तो विशेष आय नहीं है । काम में लगे उनके पुत्रों ने बताया कि पढ़ाई के साथ वह अपने पुश्तैनी कार्य मे पिता व बाबा का सहयोग भी करते हैं।