पिछलगू रही भाजपा के लिए चुनौती के साथ अवसर भी बड़ा
शिअद-भाजपा का 24 साल पुराना गठबंधन टूटने का सीधा असर जिले की राजनीति पर पड़ना तय है।
सत्येन ओझा, मोगा : शिअद-भाजपा का 24 साल पुराना गठबंधन टूटने का सीधा असर जिले की राजनीति पर पड़ना तय है। अभी तक की स्थानीय राजनीति में अकाली दल की पिछलग्गू बनकर रही भाजपा के लिए जिले की राजनीति में अपनी पहचान बरकरार रखना बड़ी चुनौती तो है लेकिन भाजपा के लिए इससे बड़ा अवसर भी है।
हिन्दु बहुल मोगा शहर विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी अकाली दल से डेढ़ दशक से मांगती आ रही है लेकिन हर बार उसे अपनी हिस्सेदारी के रूप में नगर निगम की राजनीति में सिर्फ सीनियर अकाली दल का पद देकर संतुष्ट किया जाता रहा है। गठबंधन की राजनीति में भाजपा को जिले में अन्य कहीं भी कोई बड़ा पद कभी नहीं मिला। ये स्थिति तब है जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पंजाब का बसे बड़ा गढ़ मोगा रहा है। यहां पर संघ की गतिविधियां सबसे ज्यादा रही हैं।
साल 1997 से लेकर अब तक की जिले की राजनीति पर नजर डालें तो तीन बार ये सीट अकाली भाजपा गठबंधन के पास रही है। दो बार जत्थेदार तोता सिंह विधायक बने, जबकि दो बार जोगिंदर पाल जैन इस सीट से विधानसभा में पहुंचे, जिसमें उन्होंने एक कार्यकाल कांग्रेस के रूप में पूरा दिया जबकि दूसरे कार्यकाल में एक साल कांग्रेस में रहे, बाद में कांग्रेस व विधानसभा सीट से इस्तीफा देकर साल 2013 के उप चुनाव में फिर से अकाली दल के चिन्ह पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। दूसरी बार साल 2017 में ये जीत कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ. हरजोत कमल ने जीतकर अकाली दल को बड़ी चुनौती दी थी।
हालांकि राजनीति के जानकार मानते हैं कि डॉ. हरजोत कमल तब जोगिदर पाल जैन के अंदरखाते समर्थन से ही जीते थे। वर्तमान परिवेश में अकाली दल की बिखरी हुई ताकत अब एक हो चुकी है, जिले के राजनीति को डेढ़ दशक तक अपने इशारे पर चलाने वाले जोगिदर पाल जैन व अकाली दल के वरिष्ठ नेता एवं कोर कमेटी के सदस्य जत्थेदार तोता सिंह गुटएक हो चुका है, ये एकजुटता उस समय हुई थी, जब 24 साल पुराना अकाली-भाजपा गठबंधन टूट चुका है। ये अकाली दल भी जानता है कि अकाली दल जब भी इस सीट पर विजयी हुआ शहर के हिन्दू वोटर निर्णायक भूमिका में रहे। मालवा में 2017 चुनाव में शिअद को मिली थी करारी हार
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में जब गठबंधन को करारी पराजय का सामना करना पड़ा था, तो मालवा में अकाली दल सिर्फ आठ सीटों पर सिमट गया था, गठबंधन की पराजय के पीछे माना गया था कि अकाली दल लोगों के मन से इस चुनाव में उतर गया था। उसी समय भाजपा नेतृत्व ये मानने लगा था कि अगर वह अकाली दल से अलग होकर लड़ता को उसकी इतनी दुर्गति नहीं होती। जिले की राजनीति में आम आदमी पार्टी साल 2017 में बड़ी ताकत के रूप में उभरी थी, लेकिन वर्तमान परिवेश में अब उसकी ताकत कमजोर हुई है। ऐसे में भाजपा के लिए बदली हुई परिस्थितियों को एक अवसर के रूप में बदलने का बड़ा मौका है। हालांकि चुनौती भी बड़ी है।
गठबंधन में रहकर नगर निगम तक सीमित थी भाजपा
गठबंधन की राजनीति में भाजपा सिर्फ नगर निगम में ही सीनियर डिप्टी मेयर का पद हासिल करती ही है, जैन जिस समय लगातार भाजपा कोटे से तीन टर्म इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के चेयरमैन रहे, तब ये उनकी निजी पहुंच का नजीता था, उस समय भाजपा का स्थानीय नेतृत्व भी जैन को भाजपा के रूप में स्वीकार नहीं करता था। गठबंधन टूटना दुर्भाग्यपूर्ण, लेकिन वर्करों में उत्साह दोगुना
इस संबंध में जिला भाजपा अध्यक्ष विनय शर्मा का कहना है कि गठबंधन का टूटना दुर्भाग्यपूर्ण है, अकाली दल ने जल्दबाजी की लेकिन अब अकेले होकर भाजपा के कार्यकर्ताओं में दोगुना उत्साह देखने को मिल रहा है, कार्यकर्ताओं का ये उत्साह निगम में भी भाजपा की सत्ता बनाएगा। विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ा तो जिले की चारों विधानसभा सीट जीतकर पार्टी को सौंपेंगे।
कोई ये भ्रम न करें कि हिदू वोट बैंक सिर्फ भाजपा के साथ हैं
वहां वरिष्ठ अकाली नेता व सरकिल प्रधान बरजिदर सिंह बराड़ मक्खन का दावा है कि अकाली दल सभी धर्मों की पार्टी है। किसी को भी ये भ्रम नहीं होना चाहिए कि हिन्दू वोट सिर्फ भाजपा के साथ हैं। अकाली दल का भी हिन्दू वोटों में ज्यादा गहरी पैठ है। अकाली दल विकास के मुद्दे पर राजनीति करेगी। अकेले दम पर पहले से बेहतर प्रदर्शन करेगी।