त्याग साधु-संतों और दान श्रावक का धर्म : साध्वी सुनीता

आकुलता तब तक नष्ट नहीं हो सकती जब तक उसके पास कुछ भी परिग्रह है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 09:56 PM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 09:56 PM (IST)
त्याग साधु-संतों और दान श्रावक का धर्म : साध्वी सुनीता
त्याग साधु-संतों और दान श्रावक का धर्म : साध्वी सुनीता

जासं,मौड़ मंडी: संसार में कोई भी व्यक्ति तब तक सुखी नहीं हो सकता जब तक उसको किसी भी चीज की आकुलता है और आकुलता तब तक नष्ट नहीं हो सकती जब तक उसके पास कुछ भी परिग्रह है। इसलिए परम सुखी होने के लिए त्याग की आवश्यकता होती है। हमें परिग्रह का त्याग करना चाहिए। यह धर्मसभा में त्याग धर्म पर प्रवचन देते हुए साध्वी डा. सुनीता महाराज ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा पूर्ण परिग्रह का त्याग ही जैन मुनियों का आधार है। किसी भी बाह्य वस्तु का आलंबन नहीं लेते, सूई बराबर भी परिग्रह उनके साथ नहीं होता है। दीन दुखी, अनाथ, विधवा, साधर्मी भाई-बहनों की गुप्त सहायता करते रहना गृहस्थ का सबसे बड़ा धर्म है। गुप्त दान का फल बहुत मिलता है इससे न तो लेने वाले को संकोच होता है न तो देने वाले को अभिमान होता है। दान देने वाला कभी दरिद्र, गरीब नहीं होता, उसका भंडार सदा भरपूर रहता है। अपनी शक्ति के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को कुछ न कुछ दान अवश्य करते रहना चाहिए। पता नहीं यह आयु कब समाप्त हो जाए। उन्होंने कहा कि मनुष्य भोजन को ग्रहण करता है तो छोड़ता भी है, गाय घास, पानी ग्रहण करती है तो साथ उसका विसर्जन भी करती है। अर्जन और विसर्जन यह सृष्टि का नियम है। यह त्याग धर्म हमें इसी नियम से अवगत कराता है। जैन साधु कहते है कि त्याग साधु संतों का धर्म है, और दान श्रावक का धर्म है। संसार में सभी धर्म को मानने वाले लोग दान की बात को स्वीकार करते हैं।

साध्वी शुभिता कहा कि आज कल लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति में लगे हुए हैं। अपने पैसे का दुरुपयोग करते हैं। संत कहते हैं कि अपना रुपया अपनी समाज के लोगों के काम आना चाहिए। निर्धन लोगों को देना चाहिए। पढ़ने में असमर्थ है उन्हें पढ़ाना चाहिए।

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