मंगल शब्द, कल्याण आनंद का सूचक : रचित मुनि

एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि धर्म ही भाव मंगल है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Sep 2021 06:00 PM (IST) Updated:Thu, 02 Sep 2021 06:00 PM (IST)
मंगल शब्द, कल्याण आनंद का सूचक : रचित मुनि
मंगल शब्द, कल्याण आनंद का सूचक : रचित मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि धर्म ही भाव मंगल है। मंगल शब्द, कल्याण आनंद का सूचक है। जैन आगमो में टीकाकारों ने मंगल शब्द के दो भेद बतलाए। द्रव्य मंगल और भाव मंगल । द्रव्य मंगल लौकिक प्रवृत्तियों से संबंध रखता है, जैसे गृह निर्माण, गृह प्रवेश, दुकान के उद्घाटन, यात्रा प्रसंग, शिक्षा-दीक्षा विवाह आदि जीवन प्रसंगों में दही गुड़, फल-फूल कुमकुम चावल का तिलक लगाना, आदि विभिन्न प्रकार की मंगलमयी सामग्री का उपभोग उपयोग करना मंगल का सूचक माना गया है। दूसरा भाव मंगल लोकोत्तर आत्मिक भावों का सूचक है। भाव मंगल में शुभ प्रवृत्ति शुभ भावों का स्थान है। ऐसे भाव आत्मा के अभ्युदय उत्थान का हेतू है। इसकी आराधना उपासना करने से आत्मा कर्म - रज से रहित होता हुआ आत्म पद का अधिकारी बन जाता है ।

आगमकारों ने भाव मंगल चार प्रकार का बतलाया है - चत्तारि मंगल अरिहंता मंगल सिद्धा मंगलं साहू मंगल केवली पन्नत्तो धम्मो मंगल । यानी इस लोक में अरिहंत, सिद्ध, साधु, और केवली प्रभु द्वारा प्ररूपित धर्म ही सर्वश्रेष्ठ शाश्वत मंगल है। द्रव्य मंगल क्षणिक है क्योंकि जीवन भी क्षणिक है। भाव मंगल शाश्वत अखंड नित्य और अनंत आनंददायी होता है, क्योंकि आत्मा भी शाश्वत है, अत: भाव मंगल आत्मलक्ष्यी है। मंगलकारी कल्याणकारी पर्युषण महापर्व चार सितम्बर से प्रारंभ होने जा रहे हैं, हम सभी को पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की भावों के साथ जुड़कर आराधना करनी है जिससे हम सदा सदा के लिए अखंड अनंत मंगल को उपलब्ध हो सके।

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