ग्रामीण भी कर्फ्यू में घरों में रहकर कोरोना को दे रहे मात
जगराओ कोरोना वायरस के संक्रमण से हर कोई बचना चाहता है। यही कारण है कि हरेक व्यक्ति इससे बचने के लिए सरकार व प्रशासन की ओर से दिए गए निर्देशों का पालन कर रहा है। यह पालन केवल शहरों तक ही सीमित नहीं बल्कि गांवों में भी लोग स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां बरत रहे हैं। इस संदर्भ में दैनिक जागरण ने जगराओं तहसील के तहत गांव लम्मेजट्टपुरा व गांव भम्मीपुरा के लोगों व सरंपच से संपर्क किया।
बिदु उप्पल, जगराओं
कोरोना वायरस के संक्रमण से हर कोई बचना चाहता है। यही कारण है कि हरेक व्यक्ति इससे बचने के लिए सरकार व प्रशासन की ओर से दिए गए निर्देशों का पालन कर रहा है। यह पालन केवल शहरों तक ही सीमित नहीं बल्कि गांवों में भी लोग स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां बरत रहे हैं। इस संदर्भ में दैनिक जागरण ने जगराओं तहसील के तहत गांव लम्मेजट्टपुरा व गांव भम्मीपुरा के लोगों व सरंपच से संपर्क किया। इस दौरान ग्रामीणों ने बातचीत में कोरोना वायरस के कारण लगे कर्फ्यू के दौरान घर में बैठने को सही ठहराया, क्योंकि इसी में सभी की सुरक्षा है।
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स्वास्थ्य के बारे में ग्रामीण अपना रहे सावधानियां : सरपंच
गांव लम्मेजट्टपुरा के सरपंच अमनदीप सिंह ने बताया कि उनके कार्यकाल में देश व दुनिया में कोरोना वायरस फैला है। इसलिए उनकी समाज के प्रति जिम्मेवारियां बढ़ी हैं, परंतु इससे निपटने के लिए सभी ग्रामीण सहयोग दे रहे हैं। स्वास्थ को लेकर ग्रामीण पूरी सावधानियां बरत रहे हैं। दिन में पुलिस की मोटरसाइकिल व गाड़ी के हूटर बजने से डर भी लगता है। मगर, जब कर्फ्यू जनहित में स्वास्थ्य के लिए लगाया गया है, तो बाहर क्यों निकलना। हां, सुबह-शाम जरूरी सामान व पशुओं के लिए चारा लेने के लिए लोग घरों से निकलते हैं।
सरपंच ने बताया कि गांव की आबादी करीब 3500 है और 20 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। ऐसे में गांव में प्रशासन व स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से दिहाड़ीदारो की मदद के लिए कोई राशन उपलब्ध नहीं होता है। ऐसे में उनके पास जितना फंड है, उसे इसके लिए खर्च कर रहे हैं। यदि कर्फ्यू ज्यादा दिन रहा, तो गांव के गुरुद्वारों की गोलकों के 29 हजार रुपये गरीब व जरूरतमंदों की मदद के लिए खर्च करने पड़ेंगे।
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गांवों के मजदूर वर्ग लाचार : गुरमेल सिंह
गांव भम्मीुपरा की सरपंच बलजिदर कौर का कहना है गांव में कोरोना वायरस के कारण लगे कर्फ्यू से स्थिति पूरी तरह शांत है। लोग बेवजह घरों से बाहर नहीं निकलते हैं। वहीं गांव के समाजसेवक गुरमेल सिंह ने बताया कि गांव की पांच हजार आबादी में 30 प्रतिशत मनरेगा व बाहरी राज्यों के मजदूर हैं। इन दिनों इन मजदूरों का काम पूरी तरह ठप है। अगर कर्फ्यू लंबा चला, तो पापी पेट का सवाल बन जाएगा। गांव में उनके प्रयासों से अभी तक मजदूरों के लिए दो-तीन दिन का राशन व अन्य सुविधाएं हैं। मगर, आगामी दिनों में परेशानी आ सकती है। गांव में छह गुरूद्वारे हैं और उनकी गोलक के खजाने को खर्च करने के लिए पंचों की बैठक भी चल रही है। इसका एक ही मकसद है कि कर्फ्यू में कोई भूखा न सोए और जनता को सभी सुविधाएं दी जाएं।