Kitchen Gardening से 250 कृषि सखी बन गई आत्मनिर्भर, पंजाब में शौक के बूते तैयार किया जैविक खेती का अनोखा माडल
पंजाब के बठिंडा में नौ गांवों की 250 महिलाएं जैविक विधि से किचन गार्डनिंग कर रही हैं। यह कृषि सखी लोगों के घर-घर पौष्टिक सब्जियां पहुंचा रही हैं। अपने माडल से हर माह यह 15 हजार रुपये तक कमा रहीं हैं।
बठिंडा [साहिल गर्ग]। शौक के लिए महिलाएं आमतौर पर किचन गार्डनिंग का सहारा लेती हैं, लेकिन यदि यही शौक उनकी आमदनी का सहारा और लोगों की सेहत संवारने का जरिया बन जाए तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है। बठिंडा के नौ गांवों की 250 महिलाओं ने अपने इसी शौक के बूते जैविक खेती का अनोखा माडल तैयार किया है।
यह महिलाएं किचन गार्डनिंग कर जैविक विधि से सब्जियां उगा रही हैं। इनमें कीटनाशक या रासायनिक खाद का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं किया जाता, ताकि सब्जियों की पौष्किता बरकरार रहे। इन सब्जियों को वो घर-घर पहुंचा कर हर महीने 15 हजार रुपये तक कमाई भी कर रही हैं। इस ग्रुप से जुड़ीं ज्यादातर महिलाएं दसवीं से बारहवीं तक पढ़ी हैं। घरेलू काम-काज के साथ उन्होंने कृषि विभाग व बागवानी विभाग से विशेष ट्रेनिंग ली है।
'कृषि सखी' के नाम से जाने जानी वाली यह महिलाएं विशेषज्ञों की मदद से कम जगह में ही अच्छी पैदावार ले रही हैं। इन्हें केंद्र सरकार के आजीविका मिशन से भी जोड़ा गया है। कृषि सखियां बहुत ज्यादा जमीन पर खेती न करके अपने छोटे से किचन गार्डन में ही सब्जियां उगाती हैं। इन्हें ठेके पर जमीन नहीं लेनी पड़ती। सभी कृषि सखियां आपस में तय करके अलग-अलग सब्जियां उगाती हैं, ताकि एक ही तरह की सब्जी की बहुतायत न हो जाए।
जैविक खाद तैयार करती महिलाएं। जागरण
लोग इन्हें वाट्सएप के माध्यम से आर्डर देते हैं और यह घर तक सब्जी पहुंचा देती हैं। कुछ लोग खुद भी सब्जी ले जाते हैं। यह माडल जिले के फूल ब्लाक के गांव सेलबराह, सिधाना, कालोके, बुर्ज गिल, राइया, धिंगढ़, आलीके, हरनाम सिंह वाला व दूलेवाला में काफी कामयाब हो रहा है। अब इसे भगता ब्लाक में भी इसे शुरू किया जाएगा। एक कृषि सखी एक किचन गार्डन तैयार करती है। इन्हीं में से तीन कृषि सखियों को कपूरथला साइंस सिटी की ओर से अन्य राज्यों में ट्रेनिंग देने के लिए भी चुना गया है। 50 महिलाओं ने मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली है। वे अन्य गांवों में जाकर लोगों को जैविक विधि से खेती के लिए जागरूक भी करती हैं।
मटका खाद का इस्तेमाल
गांव दूनेवाला की कृषि सखी रमनजीत कौर कहती हैं कि उनको यह काम काफी पसंद आ रहा है। वह अपने परिवार का पालन-पोषण करने में सक्षम हैं। वहीं, गांव हरनाम सिंह वाला की कृषि सखी कर्मजीत कौर बताती हैं कि हम लोगों की सेहत का पूरा ध्यान रखती हैं। मटका खाद का इस्तेमाल करती हैं, जिससे बाजार में बिकने वाले हानिकारक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता। महिलाएं खुद जैविक खाद तैयार करती हैं, इसके लिए उन्हें विशेष ट्रेनिंग दी गई है।
लाकडाउन में भी कम नहीं हुई मांग
महिलाएं मशरूम, कद्दू, टींडा, खीरा, तोरी, करेला, लौकी के अलावा हर तरह की सब्जियां उगा रही हैं। बिक्री में जिला प्रशासन भी इनकी मदद कर रहा है। लाकडाउन में जब लोग घरों में कैद थे तो ये समय महिलाएं अपने स्वयं सहायता समूह को मजबूत करने में लगी थीं। यही कारण है कि लाकडाउन में भी इनकी सब्जियों की मांग में कमी नहीं आई। इसके अलावा आम, नीबू व आंवले का अचार बनाकर भी बेच रही हैं।
हर महीने कर रहीं बचत
आजीविका मिशन के इंचार्ज सुखविंदर सिंह का कहना है कि इन ग्रुप मेंबर्स को अपना काम शुरू करने के लिए महज एक फीसद ब्याज पर कर्ज भी दिया जाता है। इससे हर महीने जो भी पैसा इकट्ठा होता है, उसका कुछ हिस्सा बैंक की किश्त में जाता है। इसी राशि में से हर महीने एक हजार रुपये की सेविंग होती है। बाकी पैसे महिलाओं में बांट दिए जाते हैं। सारा खर्च निकाल कर ये महिलाएं 10 से 15 हजार रुपये आसानी से कमा लेती हैं।