आत्मा कि कीमत समझने का अर्थ है उत्तम तप : रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सान्निध्य में मधुर वक्ता रचित मुनि ने कहा कि आपके जीवन में बहुत बड़े संकट आ गए हो।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सान्निध्य में मधुर वक्ता रचित मुनि ने कहा कि आपके जीवन में बहुत बड़े संकट आ गए हो। आप भगवान के सामने पंचपरमेष्ठी की साक्षी में चारों प्रकार के आहार जल का, कषायों का त्याग करके बैठ जाते हो। प्रभु! तुम्हारे चरणों में बैठा हूं। चाहे मुझे बचाओ, चाहे मारो, चाहे मेरा उद्धार करो। जो कुछ करो सो तुम करो, फिर व्यक्ति कभी उदास नहीं हो सकता ।
जिन-जिन महापुरुषों पर उपसर्ग आया, उपसर्ग के समय चारों प्रकार के आहार का त्याग करके परमात्मा की भक्ति में लीन हो गए, चाहे सती सीता हो, चाहे सती द्रोपदी हो, चाहे सोमा सती हो, चाहे मैनासुंदरी हो, चाहे सेठ सुदर्शन हो। जिन जिन पर संकट उपसर्ग आया, वो परमात्मा की भक्ति में लीन हो गए। सेठ सुदर्शन ने प्रतिज्ञा कर ली थी कि जब तक मेरा उपसर्ग नहीं हट जाएगा, तब तक चारों प्रकार के आहार का त्याग है। भावना पूर्ण हुई। संकट टल गया। उत्तम तप धर्म यानी अपनी दृष्टि को हंस दृष्टि बना लेना, जिस तरह हंस पानी को छोड़ देता है और दूध को पी लेता है। बस उसी तरह हमारे पास भी दो चीजें हैं। एक शरीर और एक आत्मा। आत्मा के बिना शरीर जलाने के काम ही आता है। इसका मतलब इस शरीर की यदि कीमत है तो किसके कारण हैं आत्मा के। तो आत्मा कि कीमत समझने का अर्थ है उत्तम तप । तन मिला तुम तप करो, करो कर्म का नाश, रवि शशि से भी, अधिक है, तुममें दिव्य प्रकाश। ये तन मिला है तो तपस्या के लिए यदि तन को पाकर के तपस्या नहीं की तो तन का उपयोग नहीं किया। हमें इस शरीर के माध्यम से आत्मा को परमात्मा बनाना है।