बदलते समय के साथ बदला खेती का अंदाज, इस तरीके ने बदल दी पंजाब में किसानों की किस्मत
पंजाब के कुछ किसानों ने फसली चक्र को तोड़ा और विविधीकरण से नाता जोड़ा। इससे उनकी किस्मत ही बदल दी। किसान गेहूं धान के अलावा गन्ना कपास व फल-सब्जियों की पैदावार भी जैविक तरीके से कर रहे हैैं।
संगरूर [मनदीप कुमार]। बदलते समय और बदली जरूरतों के साथ किसानों ने खेती का तरीका भी बदल लिया है। उन्होंने फसली चक्र को छोड़कर फसली विविधीकरण को अपना लिया है। वे गेहूं-धान के चक्र को तोड़कर अब अलग-अलग नकदी फसलें, फल व सब्जियां भी उगा रहे हैं। अब जैविक उत्पादों, फल व सब्जियों की मांग है तो किसान रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद, गोबर, गौमूत्र और अन्य देसी खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। संगरूर में साइंटिफिक अवेयरनेस एंड सोशल वेलफेयर फोरम के प्रधान डा. एएस मान व उनके पुत्र डा. कमलप्रीत सिंह मान ने इसी अंदाज में खेती को नई दिशा दी है। इस क्रम में संगरूर के गांव रोशनवाला में दो एकड़ जमीन पर अपनाया गया देसी खेती प्रोजेक्ट फसली विविधीकरण को एक नई राह दिखा रहा है।
चार हिस्सों में बांटा खेत
दो एकड़ जमीन को चार अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया है। वहां केवल गेहूं या धान ही नहीं, बल्कि गेहूं, चना, नरमे की फसल की बिजाई अलग-अलग जगह पर एक साथ ही जा रही है। इतना ही नहीं, यहां विभिन्न प्रकार के फलों, सब्जियों व गन्ने की काश्त भी होगी। खेत में मधुमक्खियां पालने के लिए पांच बाक्स लगाए गए हैं। इनसे शहद प्राप्त होगा, जिसे बेचकर आमदनी होगी।
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क्यारियों में खेती, पानी की जरूरत भी कम
खेतों में फसल जमीन पर नहीं लगाई जाएगी, बल्कि बेड (क्यारियां) बनाकर खेती की जा रही हैं। डेढ़ फीट चौड़े बेड ट्रैक्टर की मदद से बनाए गए हैं, जिसे खेत की लंबाई तक बनाकर इस पर गेहूं व चने की बिजाई की गई है। गेहूं के सवा किलो दाने एक एकड़ में बीजे गए हैं। नौ-नौ इंच की दूरी पर गेहूं के बीज लगाए गए हैं। नरमा व कपास के 1250 बीज एक एकड़ में लगाए गए हैं। इनके पास ही क्यारियों में गन्ने के टुकड़े चार-चार फीट की दूरी पर लगाए गए हैं। फसलों को पानी देने के लिए खेत के चारों तरफ और मध्य में खाल (पानी निकासी के लिए नाली) खोदे गए हैं। क्यारियों के बीच की दूरी में भी यहीं से पानी पहुंचेगा। खाल में जमा पानी ही जमीन को नमी देगा, जिससे फसलें विकसित होंगी।
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गोबर, गोमूत्र व अन्य सामग्री का प्रयोग
खेत के मध्य ही पांच पशु रखे गए हैं। इनके गोबर, मूत्र व नहलाने के बाद बचने वाले पानी को एक जगह एकत्रित किया जा रहा है। मूत्र व पानी फसलों में डाला जाता है, जबकि गोबर व फसलों के अवशेष को खाद बनाने के लिए तीन अलग-अलग चैंबरों में डालकर दबा दिया जाता है। दूध पीने के लिए इस्तेमाल हो रहा है, जबकि लस्सी इत्यादि से जैविक पदार्थ बनाकर खेतों में डाल रहे हैं। गोबर व अवशेषों से तैयार खाद खेत में डालकर जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा रहे हैं।
देसी कोल्ड स्टोर, बरसाती पानी जमा करने के लिए टैंक
फल व सब्जियों को देसी कोल्ड स्टोर में रखा जाता है। ईंटों की दो पक्की दीवारों के बीच रेत भरकर स्टोर बनाया गया है, जिसके बीच फल व सब्जियां रखकर ऊपर से ढक दी जाती हैं, जिसमें ये कई दिनों तक ताजी रहती है। बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए टैंक बनाए गए हैं। यहीं से खेतों में पानी की सप्लाई बिना मोटर के कर दी जाती है।
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गुड ग्रो ग्रुप से मिली प्रेऱणा
डा. एएस मान ने बताया कि फगवाड़ा गुड ग्रो ग्रुप के बूटा सिंह धीरा, कुलदीप सिंह मधोके, जसविंदर सिंह बुढलाडा व अवतार सिंह फगवाड़ा की प्रेरणा से यह देसी खेती प्रोजेक्ट अपनाया है। इससे पानी, बिजली व खेती मशीनरी के खर्च की बचत हो रही है। खेती लागत कम हो गई है। फसली विविधता से आमदनी में इजाफा होगा।