सौ साल की लाइफ वाली श्री मदभागवत गीता
श्रीमदभागवत गीता हमेशा से ही हिदुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र रही है।
राधिका कपूर, लुधियाना
श्रीमद्भागवत गीता हमेशा से ही हिंदू धर्म की आस्था का केंद्र रही है। महानगर के जाने माने उद्यमी के प्रयासों से एक ऐसी गीता शहर में पहुंची है, जो लोगों के बीच आकर्षण का ही नहीं बल्कि कौतुहल का केंद्र भी है। मिलरगंज के रामगढि़या गर्ल्स कॉलेज के प्रबंधक रंजोध सिंह ने इस गीता को विशेष तौर पर शिवाकाशी स्थित श्रीनिवास आर्ट प्रेस (तमिलनाडू) से मंगवाई है। यह श्रीमद्भागवत गीता कॉलेज की लाइब्रेरी में 15 दिसंबर तक रहेगी। साढ़े छह सौ पेजों वाली इस अनोखी गीता को सुबह नौ से शाम पांच बजे तक देखा जा सकता है।
6.5 किलो की है गीता
रंजोध सिंह बताते हैं कि उन्हें जानकारी मिली थी कि 6.5 किलो वजन और 12 गुणा 15 इंच के आकार वाली गीता को उत्तम किस्म के जर्मनी कागज और शुद्ध जापानी स्याही के साथ तैयार किया गया है।
ऐसे आया यह ग्रंथ
किताबों के शौकीन रहे रणजोध के अनुसार उनकी इच्छा हुई कि यह ग्रंथ खरीदकर विस्तार से पढ़ा जाए। उन्होंने इस ग्रंथ के प्रकाशक श्रीनिवास से बात की तो उन्होंने सबसे पहले मेरा धर्म पूछा। मैंने कहा मैं सिक्ख हूं तो वह बोले यह हिदुओं का ग्रंथ हैं। तो मैंने जवाब दिया कि मेरे लिए सभी धर्म प्रिय हैं और मुझे इस ग्रंथ को पढ़ना है। मैं इस ग्रंथ को खरीदना चाहता हूं। इस पर प्रकाशक ने कहा कि यह ग्रंथ बहुत महंगा है।
पंजाब में अपनी तरह की एकमात्र गीता
रणजोध सिंह ने बताया कि पूछताछ के बाद प्रकाशक ने कहा- चूंकि, आप इसे खरीदना चाहते हैं और पंजाब में यह पहला ग्रंथ जाएगा तो इस पर उन्होंने मुझे पांच हजार रुपये का डिस्काउंट देते हुए 33,000 रुपये में यह ग्रंथ मुझे भेज दिया। खासबात यह है कि इस गीता का स्टाक सीमित था। फिर भी उन्होंने इसे डिस्काउंट पर इसलिए भेजा, क्योंकि अपनी तरह की यह भव्य एवं विशाल गीता पहली बार पंजाब में जा रही है। रणजोध सिंह का दावा है कि यह प्रदेश में अपनी तरह की एकत्र मात्र श्रीमद्भागवत गीता है। उन्होंने कहा कि फिर मेरी इच्छा हुई कि क्यों न इस ग्रंथ को कॉलेज पुस्तकालय में रखा जाए ताकि कालेज की छात्राएं भी इससे देख और पढ़ सकें। ग्रंथ की विशेषता
साढ़े छह सौ पेज की इस गीता में कुल अठारह अध्याय हैं।
इस ग्रंथ का संस्कृत, हिदी और अंग्रेजी तीनों में ही भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
जर्मन पेपर और शुद्ध जापानी स्याही से तैयार इस ग्रंथ की लाइफ सौ साल से भी ज्यादा है।
खासबात यह है कि इस ग्रंथ को तैयार करने में चार साल का समय लगा है।