बुराइयों के उन्मूलन के लिए हमेशा श्रमशील रहे श्री पदम चंद महाराज

भारतीय संतों की उज्जवल परंपरा में उत्तर भारतीय प्रवर्तक भंडारी श्री पदमचंद महाराज का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 07:35 PM (IST) Updated:Mon, 26 Oct 2020 07:35 PM (IST)
बुराइयों के उन्मूलन के लिए हमेशा श्रमशील रहे श्री पदम चंद महाराज
बुराइयों के उन्मूलन के लिए हमेशा श्रमशील रहे श्री पदम चंद महाराज

संस, लुधियाना : भारतीय संतों की उज्जवल परंपरा में उत्तर भारतीय प्रवर्तक भंडारी श्री पदमचंद महाराज का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वह स्वनाम धन्य मुनिराज थे। जैन समाज की तरफ से 26 अक्टूबर को उनकी जयंती पर नमन किया गया। पदम चंद महाराज की सुरभि, सुंदरता, मनमोहकता उनके जीवन में साकार हुई थी। गुरुदेव भंडारी महाराज की सदगुण सौरभ से उत्तर भारत के जन-जन का मन सुरक्षित हुआ। लोक कल्याण के अनगिनत अनुष्ठान उन्होंने संपन्न किए। वह जीवन में विविध अलंकरणों से अलंकृत हुए। नवयुग सुधारक : समाज में व्याप्त बुराइयों के उन्मूलन और सुसंस्कारों के बीजारोपण के लिए गुरुदेव आजीवन श्रमशील रहे। उन्होंने हजारों जैन समाज के लोगों को व्यसनमुक्त जीवन का पाठ पढ़ाया और सम्यक, आचार, सम्यक विचार और सात्विक आहार के लिए प्रेरित किया। गुरुदेव व्यावहारिक दृष्टि से जैन श्रमण थे, परंतु यथार्थ के धरातल पर जन जन के संत थे। जन सामान्य से लेकर राष्ट्र स्तर के नेता भी उनसे मार्गदर्शन लेते थे। सेवा शिरोमणि : गुरुदेव ने अपना प्रारंभिक जीवन अपने गुरुओं और संतों की सेवा में अर्पित किया। शेष जीवन मानव सेवा में समर्पित किया। वह सभी के दुख दूर करने न सुख बांटने के लिए श्रमशील रहे। जैन गुरु ने प्रथम जिनत्व को आत्मसात किया। तत्पश्चात वह जैन श्रमण बने। फिर उन्होंने जिनत्व को जन जन में प्रतिष्ठित किया। जैन जगत ने उनको अपना गौरव भाल माना और जैन विभूषण पद से अलंकृत किया। युग प्रवर्तक : युग को नई चेतना देने के कारण पदम चंद महाराज युग प्रवर्तक कहलाए। जैन परंपरा में 20 शताब्दी के उत्तार्ध कालखंड को भंडारी युग नाम प्रदान किया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उत्तर भारत में जैन संघ का उन्होंने लगभग दो दशक तक सफल नेतृत्व किया। उनके शासन में जैन धर्म का चतुर्दिक प्रचार हुआ। अपने समय में वह जैन जगत के सर्वाधिक यशस्वी मुनिराज थे। सृजन धर्मी महापुरुष: गुरुदेव ने समाज की भलाई के लिए कई जगह अस्पतालों की स्थापना करवाई। उनकी प्रेरणा से अनेक डिस्पेंसरियां और धर्मार्थ औषधालय जन सेवा में समर्पित हैं। श्रद्धेय गुरुदेव अतिशयी महापुरुष थे। इसलिए जैन संघ के सभी साधु-साध्वी चाहते थे कि उनके शिष्यों को श्री भंडारी महाराज अपने श्रीमुख से दीक्षा पाठ पढ़ाएं। समय साक्षी है कि उन्होंने अपने जीवन काल में शताधिक मुमुक्षुओं को दीक्षा मंत्र प्रदान किया।

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