भक्ति से पुण्य और धर्म बढ़ता है : रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म.के सानिध्य में मधुर वक्ता रचित मुनि ने कहा कि अरहन्त परमात्मा की भाव भक्तिपूर्वक आराधना करने से क्या लाभ होता है?
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म.के सानिध्य में मधुर वक्ता रचित मुनि ने कहा कि अरहन्त, परमात्मा की भाव भक्तिपूर्वक आराधना करने से क्या लाभ होता है? तो कहा कि भक्ति की बड़ी महिमा है। परमात्मा के आत्मिक गुणों का चिंतन मनन करना, जीवन में उन गुणों का आचरण करना एवं अपने आराध्य देव द्वारा दिए हुए सिद्धांतों को, शिक्षा को स्वयं के जीवन में आचरण के रूप में लाना ही परमात्मा की भक्ति है। भक्ति से पुण्य और धर्म बढ़ता है, क्योंकि भौतिक संपदा की प्राप्ति वहां पर फिर गौण हो जाती हैं, अध्यात्म संपदा की विशेष उपलब्धि हो जाती है। एक सवाल आया कि संपत्ति बड़ी होती है या भक्ति बड़ी। जीवन में संपत्ति का क्या महत्व है और भक्ति का क्या तात्पर्य है। तो महापुरुष कहते हैं कि तराजू के एक पलड़े में संपत्ति रख दी जाए और दूसरे पलड़े पर भक्ति रख दी जाए। तो भक्ति बड़ी हो जाएगी और संपत्ति छोटी हो जाएगी। क्योंकि भक्ति से मन को सुकून, शांति मिलती है और संपत्ति से केवल सामान मिलता है। कहते हैं कि संपत्ति से मकान अच्छा बनाया जा सकता है। संपत्ति के द्वारा मकान अच्छा बन जाता है, लेकिन दूसरी ओर देखिए की भक्ति से तुम खुद अच्छे हो जाते हो। क्योंकि मकान कितना भी क्यों न अच्छा हो अगर मकान मालिकअच्छा नहीं है, तो उस मकान में शांति सकून नहीं रह सकता। संपत्ति तुम्हारे मकान को अच्छा बना देती है, लेकिन भक्ति मकान मालिक को ही अच्छा बना देती है। इतना अंतर होता है भक्ति और संपत्ति में। इसी दौरान श्री जितेंद्र मुनि ने कहा कि अपने भाग्य पर नहीं वरन कर्तव्य पर ध्यान दें, जिससे जिदगी में आत्मीय गुण प्रकट हो सके।