रसदार बनो रसधार नहीं : रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि मन वचन और काया की सरलता को आर्जव कहते हैं। क्योंकि जीवन में छल कपट से विकृति पैदा हो जाती है।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि मन वचन और काया की सरलता को आर्जव कहते हैं। क्योंकि जीवन में छल कपट से विकृति पैदा हो जाती है। जो दूसरों को छलता है, उसके सीने में छाले पड़ जाते हैं। इसलिए जीवन में भीतर बाहर से सरलता रखिए। क्योंकि मायाचारी व्यक्ति का, छलकपटी व्यक्ति का कभी कल्याण नहीं हो सकता। क्योंकि छल कपट करने वाले व्यक्ति का चित अशांत रहता है। और सरल व्यक्ति का चित शांत रहता है। जिनका चित्त शांत है, उनकी साधना भी सरलता उत्पन्न करती है। और जो साधना सरलता पैदा करती हैं, वही सच्चे अर्थ में साधना हुआ करती है। महापुरुषों की वाणी है कि बोली, व्यवहार आदि सभी में सरलता होनी चाहिए और जो सरल है, वही संत है। और जितनी गहरी साधना होगी, सरलता उतनी ही सम्यक होगी। क्योंकि सरलता ही साधना की कसौटी है। मन में नहीं गांठ, उनकी ईश्वर जोहते बाट। एक बार भगवान श्रीकृष्ण से रुकमणी ने पूछा कि प्रभु हम सब आपसे इतनी आत्मीयता भरा संबंध रखते हैं और आपके प्रति हमारा अनन्य प्रेम है। फिर भी ये काली कलूटी छिद्र वाली बांसुरी ही आपको इतनी प्रिय क्यों है? श्री कृष्ण जी कहते हैं कि मेरी बांसुरी में तीन गुण है- जो तुम में नहीं है। पहला गुण कि ये बिन बुलाए बोलती नहीं है। दूसरा जब बोलती है तो मीठा बोलती है। तीसरा गुण इसके अंदर कोई गांठ नहीं है। इसलिए ये हमेशा मेरे अधरों पर रहती है । यही आर्जव धर्म कहता है कि बिना बुलाए मत बोलो, बोलो तो मीठा बोलो, तुम्हारी मिठास में बनावटी पन नहीं होना चाहिए गांठ रहित सरलता हो ।