कैप्टन अमरिंदर सिंह का 'किला' बचाने को अंतिम क्षणों में बिट्टू ने भी लगाया था जोर, सुलह की कोशिश हुई नाकाम
Punjab Congress Dispute लुधियाना से कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद को बचाने के लिए अंतिम क्षणों में पूरा प्रयास किया था। उन्होंने दोनों पक्षों में समझौता कराने की कोशिश की थी लेकिन नाकाम रहे।
लुधियाना, [भूपिंदर सिंह भाटिया]। पंजाब के मंजे राजनीतिक कैप्टन अमरिंदर सिंह का कांग्रेस में 'किला' ढहने से बचाने की लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू (MP Ravneet Singh Bittu) ने अंतिम समय में पूरा जोर लगाया। गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले बिट्टू ने दोनों पक्षों में सुलह करवाने का काफी प्रयास किए थे, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद वह पंजाब के राजनीतिक ड्रामे से एकदम गायब हो गए।
बता दें हिक पंजाब में अंतिम दिनों के राजनीतिक उठापटक के पहले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत बिट्टू भी मुख्यमंत्री के लिए चर्चा में आए थे, लेकिन उन्होंने कभी अपनी दावेदारी पेश नहीं की। शनिवार को दिल्ली से पहुंचे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन व प्रदेश कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत की तरह वह भी सुबह ही चंडीगढ़ पहुंचे थे। कैप्टन के इस्तीफे वाले दिन सुबह से ही उनके पास पहुंचे थे, लेकिन वह बाद में वह अचानक गायब हो गए।
रवनीत सिंह बिट्टू के पहले पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के साथ संबंध ज्यादा मधुर नहीं थे, लेकिन वह कैप्टन को हमेशा बुजुर्ग के रूप में सम्मान देते रहे। यही कारण था कि जब-जब सिद्धू ने कैप्टन सरकार के खिलाफ ही ट्विटर पर बयानबाजी की, उन्होंने उस पर विरोध भी जताया। बिट्टू ने तो यहां तक कह दिया था कि सिद्धू जाना माना चेहरा हैं, लेकिन उसके पास कुछ बचा नहीं। उन्होंने कहा था कि पार्टी के खिलाफ कुछ कहना अनुशासनहीनता के दायरे में आता है और ऐसे लोगों का पार्टी में कोई स्थान नहीं होता। इसी कारण सिद्धू कभी भी बिट्टू के करीब नजर नहीं आए।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब यह तय हो गया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अब इस्तीफा देंगे और मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धू के करीबी का ही नाम सामने आएगा, तो बिट्टू ने खुद को पूरे प्रकरण से अलग कर लिया। चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व में सरकार बनने या उसके बाद बिट्टू कभी सामने नहीं आए। कांग्रेस के सत्रू बताते हैं कि कांग्रेस की वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी द्वारा मुख्यमंत्री बनने से इन्कार करने पर रवनीत बिट्टू, सुखजिंदर रंधावा और प्रताप सिंह बाजवा के नाम पर विशेष तौर पर विचार किया गया था। तीन बार के सांसद रवनीत बिट्टू के गांधी परिवार से करीबी रिश्तों के अलावा वह जट्ट सिख नेता हैं।