विधवा की जिंदगी नहीं हुई 'उज्जवल'

विधवा को पेंशन तो दूर अभी तक उज्जवला योजना के अधीन रसोई गैस तक नहीं मिली।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 09 Apr 2020 05:00 AM (IST) Updated:Thu, 09 Apr 2020 06:09 AM (IST)
विधवा की जिंदगी नहीं हुई 'उज्जवल'
विधवा की जिंदगी नहीं हुई 'उज्जवल'

संसू, लुधियाना : विधवा को पेंशन तो दूर अभी तक उज्जवला योजना के अधीन रसोई गैस तक नहीं मिली। पाथी की आग पर रोटी बनाकर चार बेटियों के साथ गुजारा कर रही बिट्टन देवी अब राशन खत्म होने से परेशान है।

उसका कहना है कि आखिर परिवार में पांच सदस्यों का पेट कैसे भरेगा। अंबेडकर नगर गली नंबर दो ग्यासपुरा की बिट्टन देवी आप बीती सुनाते हुई इतनी भावुक हो गई कि वह घर में पड़े आटे का ड्रम निकालकर बोली, चार दिन से लंगर के सहारे पांचों प्राणी जी रहे हैं। रोजाना राशन की राह जोह रहे है, लेकिन कोई पूछने नहीं आ रहा। उन्होंने कहा कि पति धनीराम का 25 अप्रैल 2014 को लुधियाना में ही देहांत हो गया था। उनकी चार लड़कियां मनीषा, रिशा, संगीता व लक्ष्मी हैं। सभी बच्चियां ग्यासपुरा सरकारी मीडिल स्कूल में पढ़ती हैं। गुजारा करने के लिए वह लिमिटेड फैक्ट्री में हेल्पर का काम करती है, उससे बच्चों का पालन पोषण करती हैं। लॉकडाउन होने के कारण काम बंद हो गया अब उनके लिए खाने के लाले पड़ गए हैं। उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। यहां तक कि सरकार का भी कोई नुमाइंदा घर को झांकता भी नहीं। अपना और बच्चों का भूखे पेट भरने के लिए दिनभर इधर-उधर धक्के खाती रहती हैं। कभी लंगर में एक पैकेट मिला तो पांच लोग उसे खाकर पानी पीकर काट लेते है। ऐसी समस्या बिट्टन देवी की नहीं बल्कि श्रमिक बहुल क्षेत्रों में भारी संख्या में ऐसे परिवार है जो भूख को लोकलाज में छिपाने में जुटे हैं। आखिर कब तक लोग ऐसा कर पाएंगे, सरकार को चाहिए कि इन परिवारों को राशन मुहैया कराए ताकि पंजाब से श्रमिकों का पलायन ना हो।

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