Punjab Assembly Polls नजदीक आते देख बैकफुट पर आई कांग्रेस, पढ़ें लुधियाना की और भी रोचक खबरें
लुधियाना इंप्रूवमेंट ट्रस्ट जमीन विवाद में सरकार यदि बैकफुट पर न आती तो विपक्षी दलों को 5 माह में होने वाले विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार का बड़ा मुद्दा मिल जाता। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि चुनाव को देखते हुए ही सरकार बैकफुट पर आई है।
भूपेंदर सिंह भाटिया, लुधियाना। सत्ताधारी पार्टी कभी इतनी जल्दी बैकफुट पर नहीं आती, जितनी जल्दी लुधियाना इंप्रूवमेंट ट्रस्ट जमीन विवाद में प्रदेश सरकार आई है। माडल टाउन स्थित ट्रस्ट की 3.79 एकड़ जमीन की बिक्री में अंदरखाते कुछ भी गड़बड़ी हुई हो, लेकिन करोड़ों रुपये की जमीन की बिक्री में बाकायदा ई-नीलामी की सारी औपचारिकताएं पूरी की गई थी। ऐसे में सत्ताधारी दल की ओर से विपक्षियों के विरोध के बाद चंद दिन पहले हुई नीलामी रद करना आश्चर्यजनक है। इससे विभाग की कार्यप्रणाली के ऊपर भी सवालिया निशान लगने लाजमी थे। जानकारों की मानें तो भाजपा व शिअद के विरोध के बाद इस विवाद की आग सरकार तक पहुंची। ऐसे में सरकार यदि बैकफुट पर न आती तो विपक्षी दलों को 5 माह में होने वाले विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार का बड़ा मुद्दा मिल जाता। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि चुनाव को देखते हुए ही सरकार बैकफुट पर आई है।
अकाली दल में ही त्रिकोणीय राजनीति
चुनाव के दौरान अक्सर एक हलके में त्रिकोणीय मुकाबला सुनने को मिलता है, लेकिन लुधियाना दक्षिण में इन दिनों शिरोमणि अकाली दल में ही त्रिकोणीय राजनीति शुरू हो गई है। दरअसल, इस हलके को पूर्वांचलियों का गढ़ माना जाता है। राजनीतिक दल ही नहीं, बल्कि एक ही दल के कई नेता भी पूर्वांचली मतदाताओं में अपना आधार बनाने की कोशिश में रहते हैं। चुनाव से पहले शिअद के तीन प्रबल दावेदार यहां जोर-शोर से जुटे हैं। इनमें एक पूर्व मंत्री, एक पार्षद और एक पार्षद के पिता हैं। ऐसे में छुट्टभैया नेता खूब मलाई मार रहे हैं। ये लोग इन तीनों ही दावेदारों के पास हाजिरी लगाते हैं और सभी को आश्वस्त करते हैं कि पूरा पूर्वांचल समाज उनके साथ है, उनकी जीत सुनिश्चित है। दावेदार सब जानते हुए भी ऐसे लोगों को खर्चा पानी देकर खुश रखते हैं।
पंजाब में भाजपा के आक्रामक तेवर
किसानों के आंदोलन के बाद से ही प्रदेश में कई स्थानों पर भाजपा नेताओं की किरकिरी हुई। कई जगह तो उनके नेताओं पर हमला भी हुआ। हालांकि मजबूत और परंपरागत काडर वाली इस पार्टी ने धैर्य नहीं खोया और चुपचाप बर्दाश्त करती रही। सत्ताधारी कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल भी उन्हें कमजोर मानने लगे। हालांकि अब पार्टी को लगने लगा है कि आक्रामक तेवर अपना कर ही अपनी गरिमा वापस पाई जा सकती है। इसका उदाहरण लुधियाना में देखने को मिला, जहां भाजपा कई मौकों पर विरोधियों के खिलाफ खुलकर सामने आई। भले वह महिला सेल की मीटिंग के दौरान किसानों का विरोध हो या फिर घंटाघर में पार्टी मुख्यालय के समक्ष कांग्रेसियों का प्रदर्शन हो। इन मामलों में भाजपा ने कड़ा रुख अपनाया और विपक्षियों को बताया कि भाजपा समय आने पर आक्रामक तेवर भी दिखा सकती है।
सेखों की वापसी से रसूखदारों की हार
बीते दिनों निगम के सचिव जसदेव सिंह सेखों की ट्रांसफर हो गई थी। एक माह के अंदर ही ये आर्डर निरस्त हो गए तो मामला चर्चा में आया है। इस फैसले का विरोध करने वाली यूनियन तो इसे अपनी जीत बता रही है, वहीं रसूखदार पालीथिन निर्माताओं की हार मानी जा रही है। निगम के सचिव जसदेव सिंह सेखों की छवि एक जुझारू अफसर वाली है। कुछ माह पहले मेयर ने स्वयं पालीथिन के खिलाफ मुहिम की बागडोर सेखों को सौंपी थी और उन्होंने चंद दिनों में ही तहलका मचा दिया था। बड़ी संख्या में चालान काट दिए। पालीथिन निर्माताओं का नुकसान होने लगा तो उन्होंने मंत्री तक अपनी पहुंच लगाई और सेखों की बदली करवा दी। सेखों के मामले में खुद मेयर भी असहाय स्थिति में रहे और कुछ नहीं कर सके। फिर क्या था, निगम के मुलाजिम अपने अफसर की गलत ट्रांसफर के खिलाफ सड़कों पर उतर आए और विभाग को फैसला वापस लेना पड़ा।
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