छह माह में बीस रुपये तक उछली दालें, पिछले दस दिन में पांच रुपये फिसली

कोविड महामारी के चलते मांग एवं आपूर्ति में बने गैप के कारण पिछले छह माह के दौरान दालों की कीमतों में औसतन बीस रुपये प्रति किलो तक का उछाल आया था राजीव शर्मा लुधियाना। कोविड महामारी के चलते मांग एवं आपूर्ति में बने गैप के कारण पिछले

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 05:19 AM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 05:19 AM (IST)
छह माह में बीस रुपये तक उछली दालें, पिछले दस दिन में पांच रुपये फिसली
छह माह में बीस रुपये तक उछली दालें, पिछले दस दिन में पांच रुपये फिसली

राजीव शर्मा, लुधियाना।

कोविड महामारी के चलते मांग एवं आपूर्ति में बने गैप के कारण पिछले छह माह के दौरान दालों की कीमतों में औसतन बीस रुपये प्रति किलो तक का उछाल आया था, लेकिन अब पिछले दस दिन से कोरोना की दूसरी लहर के कहर को नियंत्रित करने के लिए देश के कई राज्यों में लाकडाउन लगा है। होटल, रेस्टोरेंट, ढाबा, ईटिग प्वाइंट्स बंद हैं। इसके अलावा विवाह समारोह भी दस बीस लोगों तक सिमट कर रह गए हैं। बड़ी पार्टियां करने पर भी रोक है। नतीजतन व्यवसायिक क्षेत्र में सुस्ती से दालों की मांग में पच्चीस से तीस फीसद तक की कमी आई है और कीमतों में एक बार फिर गिरावट का दौर शुरू हो गया है। दालों की कीमतें पिछले दस दिनों में औसतन पांच रुपये प्रति किलो तक गिरी हैं। कारोबारियों का तर्क है कि यदि इसी तरह कोरोना को लेकर प्रतिबंध जारी रहे तो दाल बाजार में नर्मी का रूख बना रहेगा।

दाल कारोबारियों का तर्क है कि देश में दाल का उत्पादन मांग के मुकाबले कम है। ऐसे में विदेशों से दाल का आयात करके घरेलू मांग की पूर्ति की जाती है। देश में दाल का उत्पादन करीब 240 लाख टन है। जबकि मांग 250 से 255 लाख टन के आसपास है। चालू वित्त वर्ष के दौरान 11 से 12 लाख टन दालों का विदेशों से आयात होने की संभावना है। इससे घरेलू बाजार की मांग को पूरा किया जा सकेगा। दालों की खेती ज्यादातर मानसून पर निर्भर है, खराब मौसम दाल बाजार के गणित को बिगाड़ सकता है। कारोबारियों का तर्क है कि विश्व के कुल दाल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 24 फीसद है। सरकार विदेशों पर दालों की निर्भरता को कम करने के लिए प्रयासरत है। सरकारी प्रयासों से दाल का उत्पादन पिछले पांच छह साल में 140 लाख टन से बढ़ कर 240 लाख टन पर पहुंच गया है। अभी भी मांग एवं उत्पादन में गैप बना है।

लुधियाना होलसेल दाल डीलर्स एसोसिएशन के पूर्व सचिव एवं एनएलटी एग्रो प्राइवेट लिमिटेड के एमडी संजीव गुप्ता कहते हैं कि मांग और आपूर्ति में गैप के कारण ही दालों की कीमतों में उछाल आया था। कोविड के कारण सप्लाई काफी प्रभावित रही। छह माह में कीमतों में पंद्रह से बीस रुपये प्रति किलो तक का उछाल आया था। अब व्यवसायिक मांग कम हुई है। इससे दालों की कीमत में कमी आ रही है। संजीव के अनुसार अब होलसेल बाजार में मूंग धुली दाल की कीमत सौ रुपये प्रति किलो है। जबकि मूंगी साबुत 90 रुपये, मूंग टुकड़ा 96 रुपये, उड़द धुली 110 रुपये, उड़द साबुत 85 से 90 रुपये, उड़द टुकड़ा नब्बे से सौ रुपये, मसुर साबुत 75-80 रुपये, राजमा जम्मू सौ से 110 रुपये, राजमा चित्रा 115 से 125 रुपये, अरहर दाल 90 से 100 रुपये, चना दाल 67 से 72 रुपये, रौंगी 85 से 90 रुपये, काबुली चना 75 से 100 रुपये, काला चना 65 से 70 रुपये प्रति किलो हैं। होलसेल बाजार में दालों की कीमतें अपने पीक से पांच से सात रुपये तक कम हुई हैं।

प्रमुख रिटेलर रिखी राम नंद लाल के संचालक नवीन अग्रवाल कहते हैं कि चना दाल के रेट छह माह में 65 रुपये से बढ़ कर 85 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं। इसी तरह मूंग धुली दाल के रेट 95 रुपये से बढ़ कर 114 रुपये, मूंगी साबुत के रेट 90 रुपये से बढ़ कर 110 रुपये, सफेद चने के रेट 80 रुपये से 105 रुपये, उड़द साबुत के रेट 90 से 110 रुपये, उड़द धुली के रेट 110 से 128 रुपये, राजमा जम्मू के रेट सौ रुपये से लेकर 125 रुपये तक, राजमा चित्रा के रेट 120 रुपये से लेकर 135 रुपये तक प्रति किलो तक हैं। लाकडाउन के कारण मांग में अंतर आया है। अब दाल के रेट में नर्मी रह सकती है।

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