लुधियाना में मेडिक्लेम रद करने पर स्थायी लोक अदालत ने बीमा कंपनी को किया 10 हजार जुर्माना

स्थायी लोक अदालत (पीएलए) ने एक बीमा कंपनी को पीड़ित महिला को उसके पति के मेडिक्लेम को गलत तरीके से रद करने पर मुआवजे के रूप में दस हजार रुपये मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं कंपनी को दो महीने में मेडिक्लेम के रूप में 47393 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 19 Nov 2021 01:31 AM (IST) Updated:Fri, 19 Nov 2021 01:31 AM (IST)
लुधियाना में मेडिक्लेम रद करने पर स्थायी लोक अदालत ने बीमा कंपनी को किया 10 हजार जुर्माना
लुधियाना में मेडिक्लेम रद करने पर स्थायी लोक अदालत ने बीमा कंपनी को किया 10 हजार जुर्माना

जासं, लुधियाना : स्थायी लोक अदालत (पीएलए) ने एक बीमा कंपनी को पीड़ित महिला को उसके पति के मेडिक्लेम को गलत तरीके से रद करने पर मुआवजे के रूप में दस हजार रुपये मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं कंपनी को दो महीने में मेडिक्लेम के रूप में 47,393 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया है। ऐसा नहीं करने पर बीमा कंपनी को नौ प्रतिशत ब्याज भी देना होगा। यह आदेश स्थायी लोक अदालत के चेयरमैन बलविदर सिंह संधू और सदस्य राजविदर कौर व वीएम वधावन ने सुनाया है। लुधियाना की सपना कालिया ने स्थायी लोक अदालत के पास याचिका दायर की थी। इसमें बताया था कि उनके पति गौरव कालिया (अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश) की बीमारी के बाद मृत्यु हो गई थी। पति ने नेशनल इंश्यारेंस कंपनी की फोकल प्वाइंट स्थित ब्रांच से मेडिक्लेम पालिसी ली थी। नौ नवंबर 2018 को उनके पति को मोहाली के फोर्टिस अस्पताल मोहाली में भर्ती करवाया गया। अगले दिन उन्हें छुट्टी दे दी गई। उन्हें किडनी की बायोप्सी कराने की सलाह दी गई थी। डाक्टरों की सलाह पर उन्हें 24 घंटे निगरानी में रखा गया क्योंकि खून बहने और अन्य जटिलताओं की आशंका थी। बीमा कंपनी से कैशलेस ट्रीटमेंट का अनुरोध किया गया लेकिन उन्हें अप्रूवल नहीं दी और कहा कि बाद में क्लेम दिया जाएगा। बाद में कंपनी ने क्लेम को खारिज कर दिया और अस्पताल का भुगतान नहीं किया।

वहीं, बीमा कंपनी ने क्लेम रद करने के अपने फैसले को सही बताते हुए दलील दी कि बीमा पालिसी के नियमों व शर्तो के अनुसार क्लेम नहीं बनता है। मरीज को केवल टेस्ट के लिए भर्ती करवाया गया था। इसे बिना भर्ती किए भी किया जा सकता था। रिकार्ड व सुबूतों के आधार पर स्थायी लोक अदालत ने पाया कि बीमा कंपनी ने पालिसी के नियमों की गलत व्याख्या की थी। वह व्यक्ति किडनी के मरीज थे। डाक्टरों ने प्रमाणित किया है कि किडनी ग्राफ्ट की शिथिलता को देखते हुए एक अल्ट्रासाउंड गाइडेड किडनी बायोप्सी की जानी थी। इस प्रक्रिया के बाद ज्यादा खून बहने का खतरा था। इस तरह की बायोप्सी मरीज को बिना अस्पताल में भर्ती किए नहीं हो सकती। अदालत ने कंपनी के फैसले को गलत करार दिया।

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