लुधियाना के कई इलाकाें में कोरोना की बीमारी को छिपा रहे लोग, जानें क्या है कारण
मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. कर्मवीर गोयल कहते हैं कि उनके पास जब खांसी बुखार व सांस लेने में तकलीफ जैसे कोरोना लक्षण के साथ मरीज आते हैं तो सबसे पहले वह उन्हें सलाह देते हैं कि वह अपना टेस्ट करवाएं। इस पर मरीजों टेस्ट करवाने से कतराते हैं।
लुधियाना, जेएनएन। सेहत विभाग कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर तमाम प्रयास कर रही है, लेकिन इसके बावजूद भी जहां संक्रमण बढ़ रहा है, वहीं संक्रमित मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच रहे हैं। इसके चलते उन्हें लेवल थ्री वाले अस्पतालों में भर्ती होना पड़ रहा है। चिकित्सकों की मानें तो संक्रमण बढऩे और मरीजों के गंभीर स्थिति में पहुंचने की वजह सामाजिक भेदभाव का डर है।
लोग लक्षण दिखाई देने के बाद भी जांच नहीं करवाते और परिवार से रिश्तेदारों व जान पहचान वालों में संक्रमण को फैलाते रहते हैं। संदिग्ध मरीजों को डर होता है कि अगर वह पॉजिटिव आ गए तो जानने वाले लोग इसको लेकर बातें करेंगे, उसके परिवार से दूरी बना लेंगे और हमेशा के लिए पॉजिटिव होने का लेबल उन पर लग जाएगा। संदिग्ध मरीजों की यही गलत धारणा उन्हें गंभीर स्थिति में ले जा रही है ।
सामाजिक भेदभाव के डर से बीमारी को छिपा रहे लोग
दीपक अस्पताल की मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. मनीत कहती हैं कि उनके पास रोजाना ऐसे बहुत से मरीज आते हैं, जिन्हें कोरोना के लक्षण होते हैं, लेकिन वह टेस्ट करवाने को तैयार नहीं होते। उन्हें इसके लिए बहुत समझाना पड़ता है। इनमें अच्छे परिवारों के लोग भी शामिल है।
लोगों को डर है कि अगर सोसायटी में पता लग गया तो सामाजिक भेदभाव शुरू हो जाएगा। लोग उनका बहिष्कार कर देंगे। बीमारी से ठीक होने के बाद भी दोस्त, रिश्तेदार व पड़ोसी उनसे बात नहीं करेंगे। इस वजह से बहुत से मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच रहे हैं। उन्होंने लोगों से यही अपील है कि वह अपने जीवन की परवाह करें, दूसरे क्या सोचेंगे यह मत चिंता करें।
क्वारंटाइन व आइसोलेट होने के डर से जांच नहीं करवा रहे लोग
मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. कर्मवीर गोयल कहते हैं कि उनके पास जब खांसी, बुखार व सांस लेने में तकलीफ जैसे कोरोना लक्षण के साथ मरीज आते हैं, तो सबसे पहले वह उन्हें सलाह देते हैं कि वह अपना टेस्ट करवाएं। इस पर मरीजों का पहला जवाब होता है कि अगर उन्होंने टेस्ट करवाया और अगर वह पॉजिटिव आ गए, तो उन्हें अस्पताल में कई दिनों तक भर्ती रहना होगा या घर पर आइसोलेट होना होगा। उनके परिवार के सदस्यों की भी जांच होगी। इससे परेशानी होगी।
उन पर हमेशा के लिए कोरोना पॉजिटिव आने का लेबल लग जाएगा और रिश्तेदारों और जानकार उनके पीछे बातें करेंगे और दूरी बना लेंगे। हैरानी होती है कि इस तरह की बातें करने वाले मरीजों में ज्यादातर ऐसे मरीज होते हैं, जो शिक्षित होते हैं। ऐसी सोच के कारण बहुत से मरीज नीम हकीमों के चक्कर में पड़ रहे हैं, अनक्वालीफाइड चिकित्सकों से स्टीरॉयड लेकर दवाएं खा रहें हैं और जब हालत बिगड़ जाती है, तब जाकर कोरोना जांच के लिए तैयार होते हैं।
लोग मानने को तैयार नहीं होते कि उन्हें कोरोना हो सकता
मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. गौरव सचदेवा कहते हैं कि कोराोना संक्रमित मरीजों के गंभीर स्थिति में पहुंचने की सबसे बड़ी वजह यह है कि वह शुरुआत में यह मानने को तैयार ही नहीं होते है कि उन्हें कोरोना हो सकता है। बहुत से लोग अब भी कोरोना के लक्षणों को हल्के में ले रहे हैं। उनको लगता है कि उन्हें बुखार मौसम में बदलाव की वजह से, वायरल या थकान की वजह से बुखार हो सकता है। कोई भी शुरुआत में यह मानने को तैयार नहीं होता कि अगर बुखार, खांसी जैसे लक्षण आ रहे हैं, तो वह कोरोना भी हो सकता है।
लोग कोरोना के लक्षणों को तब गंभीरता से लेते हैं, जब हल्के लक्षण गंभीर लक्षणों यानी सांस लेने में तकलीफ होना, बहुत ज्यादा खांसी होना में तबदील हो जाते हैं। इसके बाद जाकर कोरोनो टेस्ट करवाते हैं। मगर तब तक जहां मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच चुका होता है।
कोरोना के लक्षण नजर आएं तो तुरंत जांच करवाएं
डीसी वरिंदर शर्मा ने कहा कि अगर किसी को भी कोरोना के लक्षण नजर आएं, तो तुरंत कोविड टेस्ट करवाएं। लक्ष्णों के पता लगाने और जांच के बीच वाला समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। मगर लोग लक्षण महसूस होने के बावजूद भी अपना टेस्ट नहीं करवाते। इस वजह से कई बार लोगों की सेहत ज्यादा बिगड़ जाती है। सरकारी केंद्रों पर कोरोना टेस्ट मुफ्त हो रहे हैं। ऐसे में अगर किसी में लक्षण नजर आएं, तो बिना देर किए टेस्ट जरूर करवाएं। शहर में कोरोना से स्वस्थ होने वाले मरीजों का रिकवरी रेट ठीक है। लोग ना घबराएं और एहतियात जरूर बरतें।
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें