Milkha Singh Death: जब लुधियाना में मिल्खा सिंह ने कहा- बुत ते मरेयां दे लगदे, जिउंदिआ दे कि लाने ..

लुधियाना के गांव जरखड़ के स्टेडियम का संचालन करने वाली कमेटी ने मिल्खा सिंह का 27 फुट ऊंचा बुत लगाने का फैसला किया। मकसद था कि वहां अभ्यास करने वाले युवा खिलाड़ी उनसे प्रेरणा लें।वह बहुत ही सादगी भरा जीवन जीते थे।

By Edited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 07:26 AM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 12:15 PM (IST)
Milkha Singh Death: जब लुधियाना में मिल्खा सिंह ने कहा- बुत ते मरेयां दे लगदे, जिउंदिआ दे कि लाने ..
जरखड़ के स्टेडियम का संचालन करने वाली कमेटी ने मिल्खा सिंह का 27 फुट ऊंचा बुत लगाया। (फाइल फाेटाे)

लुधियाना, [भूपेंदर सिंह भाटिया]। शहर से 15 किलोमीटर दूर गांव जरखड़ स्थित माता साहिब कौर स्टेडियम में प्रवेश करते ही 27 फुट के दो विशाल बुत दूर से नजर आते हैं। एक फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह और दूसरा हाकी के जादूगर ध्यानचंद का है। हालांकि मिल्खा सिंह कभी भी अपने बुत लगाने को लेकर खुश नहीं होते थे। वह बहुत ही सादगी भरा जीवन जीते थे और तामझाम व ग्लैमर से दूर रहना पसंद करते थे। गांव जरखड़ के स्टेडियम का संचालन करने वाली कमेटी ने मिल्खा सिंह का 27 फुट ऊंचा बुत लगाने का फैसला किया। मकसद था कि वहां अभ्यास करने वाले युवा खिलाड़ी उनसे प्रेरणा लें। कमेटी के पदाधिकारी मिल्खा सिंह से चंडीगढ़ स्थित उनके निवास पर मिले।

जब उन्होंने स्टेडियम में उनका बुत लगाने की योजना के बारे में बताया तो मिल्खा सिंह ने तपाक से कहा, 'बुत ते मरया दे लगदे, जिउंदिआ दे कि लाने..(बुत तो मरे लोगों के लगते हैं, जिंदा इंसान के क्या लगाने)। इस पर कमेटी ने बताया कि कई बड़ी हस्तियों के बुत देश में लगते रहे हैं और आपका बुत तो युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बनेंगे, तब वह मान गए। वर्ष 2014 में अपने बुत का अनावरण करने के लिए मिल्खा सिंह गांव जरखड़ विशेष तौर पर आए थे।

उन्होंने उस समय भी कहा कि वह बुत लगवाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन यदि मेरा बुत युवाओं के लिए प्रेरणा बने तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। छोटे से गांव में स्टेडियम और बड़ी संख्या में खेल प्रेमियों को देख मिल्खा सिंह काफी प्रभावित हुए। उन्होंने कहा था कि गांवों में काफी प्रतिभाएं होती हैं। यहां कुछ ऐसा बड़ा काम करें, जिससे प्रतिभाएं निखर कर सामने आएं। वह गांव में एस्ट्रोटर्फ लगा देख काफी प्रभावित थे। इसके बाद आयोजकों ने स्टेडियम में हाकी अकादमी को बड़ा रूप दिया। यहां से आज राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी निकल रहे हैं।

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