मिलिए पंजाब के दृष्टिहीन ज्ञान चंद से... मिनटों में निकाल देते हैं कपड़ों के बल, मेडिकल स्टाफ व पुलिस के लिए सेवा फ्री
ये हैं बठिंडा के ज्ञान चंद। यह कभी होमगार्ड में हुआ करते थे। आंखों की ज्योति गई तो इन्होंने प्रेस करने का काम शुरू कर दिया। कोरोना काल में वह कोरोना वरियर्स मेडिकल स्टाफ व पुलिस के कपड़े फ्री में प्रेस करते हैं।
बठिंडा [नितिन सिंगला]। जो लोग अपनी शारीरिक कमियों के लिए हमेशा ईश्वर से शिकायत करते रहते हैं, उन्हें एक बार ज्ञानचंद के जीवन में झांक कर देखना चाहिए। 55 वर्षीय ज्ञान चंद दृष्टिहीन हैं, लेकिन उन्हें भगवान से कोई शिकायत नहीं। वे कहते हैं, 'दुनिया में सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके हाथ-पांव नहीं हैं। मैं उनके मुकाबले खुश किस्मत हूं। मेरे हाथ सलामत हैं। इनसे मैं अपना और अपने परिवार का गुजारा कर सकता हूं।'
बठिंडा की अमरपुरा बस्ती की गली नंबर दो में रहने वाले ज्ञान चंद होमगार्ड रहे हैं। अब वे सुर्खपीर रोड पर कपड़े प्रेस (इस्तरी) करने का काम करते हैं। कोराना के दौर वह मेडिकल स्टाफ व पुलिस कर्मियों के कपड़े प्रेस करने के पैसे नहीं लेते। कहते हैं, 'कोरोना के खिलाफ लड़ाई में डटे योद्धाओं की किसी भी रूप में मदद कर पाऊं तो खुद को सौभाग्यशाली समझूंगा।'
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पूरी तरह दृष्टिहीन होने के बावजूद वह इतनी सफाई से कपड़ों को प्रेस करते हैं कि देखने वाले हैरान रह जाते हैं। उन्होंने खुद को इस हुनर में इतना साध लिया है कि मुश्किल से मुश्किल कपड़ों को भी आसानी से प्रेस कर लेते हैं। वे कहते हैं कि कोई भी काम करने की ललक हो तो आंखों की रोशनी होना या न होना कोई मायने नहीं रखता।
1994 में छोड़ी नौकरी, 2012 में चली गई
आंखों की रोशनीज्ञान चंद के परिवार का पालन पोषण इसी काम से होता है। पत्नी गीता रानी गृहिणी हैं। वे भी काम में मदद करती हैं। 1994 में ज्ञान चंद ने होम गार्ड की नौकरी छोड़ दी थी। सरकार की तरफ से सिर्फ 750 रुपये पेंशन मिलती है। कोरोना काल से पहले कपड़े प्रेस करके दिन में करीब 250 रुपये कमा लिया करते थे। अब मुश्किल से 100 से 150 रुपये ही कमा पाते हैं। बेटी की शादी हो चुकी है और बेटा बीटेक कर चुका है। नौकरी की तलाश कर रहा है।
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1996 में बीमारी के कारण उनकी आंखों की आधी से ज्यादा रोशनी चली गई थी। 2005 से उन्होंने प्रेस करने का काम शुरू किया। 2012 तक वे पूरी तरह दृष्टिहीन हो गए थे। वे हर तरह के सूट, पुलिस की वर्दी, कोट-पैंट और साड़ी आदि प्रेस कर लेते हैं।
कोरोना पीड़ितों की मदद को तत्पर
ज्ञान चंद कहते हैं कि कोरोना काल में पुलिस कर्मियों और स्वास्थ्य कर्मियों की सेवा से प्रभावित होकर मेरे मन में भी कोरोना पीडि़तों की मदद की भावना पैदा हुई। जनता कर्फ्यू के बाद समाजसेवी संस्थाओं ने हर गली-मोहल्ले तक जरूरतमंदों को राशन व खाना उपलब्ध करवाया। मैं भी मदद करना चाहता था, लेकिन यह संभव नहीं था, इसलिए 26 मार्च से कनाल थाना, मुलतानिया रोड, हंस नगर व बचन कालोनी में रहने वाले पुलिस मुलाजिमों व स्वास्थ्य कर्मियों के कपड़े व वर्दियां निशुल्क प्रेस करना शुरू कर दिए।
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वे रोज 12 से 15 पुलिस कर्मियों व स्वास्थ्य कर्मियों के कपड़े व वर्दियां प्रेस करते हैं। थाना कनाल कालोनी के एसएचओ गणेश्वर कुमार ने कहा कि पिछले साल लाकडाउन में दुकानें बंद रहने की वजह से वर्दी प्रेस नहीं करवाई जा सकती थी, लेकिन ज्ञान चंद घर से ही सेवाएं देते रहे। उनके प्रयास सराहनीय हैं। सिविल अस्पताल बठिंडा के नरेंद्र कुमार ब्लाक एजुकेटर ने कहा कि ज्ञान चंद इस मुश्किल दौर में लोगों को प्रेरित करने का काम कर रहे हैं।
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