Good News: चीन काे टक्कर देने की तैयारी, लुधियाना के सिलाई मशीन उद्योग कलस्टर काे 21 साल बाद मिली मंजूरी
उद्यमियों का तर्क है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में सिलाई मशीन उद्योग लगातार पिछड़ रहा है। सिलाई मशीन एवं पुर्जे बनाने के करीब तीन हजार यूनिट्स हैं। नब्बे फीसद से अधिक इकाईयां माइक्रो स्माल एंड मिडियम सेक्टर में स्थित हैं।
लुधियाना, [राजीव शर्मा]। सरकारी पेचीदगियों एवं अफसरों की आपत्तियों के ताने बाने को सुलझाने के बाद आखिरकार सिलाई मशीन उद्योग कलस्टर मंजूर हो गया। 21 साल तक सिस्टम से जूझने के बाद उद्यमियों को कलस्टर बनाने के लिए हरी झंडी मिली है। हाथों हाथ उद्यमियों ने कलस्टर में बनने वाले काॅमन फेसिलिटी सेंटर के लिए दक्षिण बाईपास पर एक एकड़ जमीन भी खरीद ली है। अब इस सेंटर में विश्व स्तरीय हाईटेक मशीनरी कास्टिंग, पेंट, हीट ट्रीटमेंट, प्राडक्ट डेवलपमेंट समेत कई तरह की अतिआधुनिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। इसमें सफेद मशीन की टेक्नोलाॅजी को विकसित किया जाएगा। नतीजतन चीन से आ रही सफेद मशीनों को यहां के उद्यमी भी अब टक्कर दे पाएंगे।
उद्यमियों का तर्क है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में सिलाई मशीन उद्योग लगातार पिछड़ रहा है। सिलाई मशीन एवं पुर्जे बनाने के करीब तीन हजार यूनिट्स हैं। नब्बे फीसद से अधिक इकाईयां माइक्रो स्माल एंड मिडियम सेक्टर में स्थित हैं। उद्योग का सालाना कारोबार करीब एक हजार से 1200 करोड़ के आसपास है। चीन से कड़ी चुनौती उद्यमियों को मिल रही है। चीन यहां के बाजार में सालाना पंद्रह हजार करोड़ की सफेद मशीन का निर्यात कर रहा है। कोविड के कारण इसमें कमी आई है। लेकिन इस सेगमेंट पर अब तक चीन का ही कब्जा रहा है। तकनीक में कमी के कारण उद्यमी हाईटेक मशीनरी नहीं बना पा रहे हैं।
सिलाई मशीन कलस्टर पर करीब पंद्रह करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसमें अस्सी फीसद केंद्र सरकार, दस फीसद सूबा सरकार और दस फीसद उद्यमी अपनी जेब से खर्च करेंगे। इस कलस्टर के लिए उद्यमी अपनी जेब से लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं। स्यूईंग मशीन डेवलपमेंट क्लब के प्रधान जगबीर सिंह सोखी कहा मानना है कि फिलहाल सिलाई मशीन उद्योग की हालत काफी खस्ता है। कच्चे माल की महंगाई का इस उद्योग पर विपरीत असर हुआ है।
पहले मशीन की कीमत 2200 से 2500 रुपये के करीब थी, जोकि अब बढ़ कर 3500 रुपये हो गई है। कोविड के कारण यूपी, बिहार समेत कई राज्यों में लाकडाउन के कारण पुरानी पैमेंट नहीं आ रही है। इससे उद्यमी आर्थिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। सोखी ने कहा कि अब कलस्टर बनने से इंडस्ट्री में नई तकनीक आएगी। उद्यमी बेहतर ढंग से काम कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि कलस्टर के सदस्यों का काम सीएफसी में जाबवर्क पर किया जाएगा। इससे उनकी लागत में कमी आएगी।
स्यूईंग मशीन डेवलपमेंट क्लब के महासचिव कुलवंत सिंह का कहना है कि सिलाई मशीन उद्योग में ज्यादातर उद्यमी माइक्रो सेक्टर में हैं। संसाधनों की कमी के कारण वे खुद को अपग्रेड नहीं कर पाए। छोटे उद्यमी टेक्नोलाजी पर बड़ा निवेश नहीं कर सकते। उनके लिए सीएफसी बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। चीन के मुकाबले सस्ती एवं मजबूत सफेद मशीन तैयार करनी है, ताकि चीन को घरेलू बाजार से आउट किया जा सके। कलस्टर से इस उद्योग को नई राह मिलेगी।