अद्भूत निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध है लुधियाना के इस स्कूल की इमारत, 100 साल बाद भी नहीं पड़ी रिपेयर की जरूरत

लुधियाना में आर्य समाज ने लुधियाना के साबुन बाजार में 1889 में एक स्कूल शुरू किया। जिसे साल 1913 में पुरानी सब्जी मंडी में स्थापित किया गया। आर्य स्कूल की इमारत को अद्भूत तरीके से तैयार किया गया था। यह इमारत आज भी अनूठी निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध है।

By Vikas_KumarEdited By: Publish:Sat, 23 Jan 2021 01:50 PM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 01:50 PM (IST)
अद्भूत निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध है लुधियाना के इस स्कूल की इमारत, 100 साल बाद भी नहीं पड़ी रिपेयर की जरूरत
लुधियाना में आर्य समाज स्कूल की इमारत दो मंजिला बनाई गई थी, जिसमें 50 से अधिक कमरे हैं।

लुधियाना, [राजेश भट्ट]। आजादी से पहले अंग्रेजों ने इसाई मिशनरियों के जरिए शिक्षा का प्रचार प्रसार करना शुरू किया और लोगों को इसाई धर्म के प्रति आकर्षित करने की कोशिशें की गई। जब इसाई मिशनरियों का विस्तार हो रहा था तो उस दौर में हिंदू व सिख धर्म की कुछ संस्थाएं आगे आई और उन्होंने शिक्षण संस्थान खोलने शुरू किए। अंग्रेजों के शासन काल में आर्य समाज ने देश के अलग अलग हिस्सों में शिक्षण संस्थानों की स्थापना की और स्वामी विवेकानंद व दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाना शुरू किया।

आर्य समाज ने लुधियाना के साबुन बाजार में 1889 में एक स्कूल शुरू किया। जिसे साल 1913 में पुरानी सब्जी मंडी में स्थापित किया गया। आर्य स्कूल की इमारत उस समय अद्भूत तरीके से तैयार किया गया था। यह इमारत आज भी अपनी अनूठी निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध है। स्कूल की इमारत दो मंजिला बनाई गई थी, जिसमें 50 से अधिक कमरे हैं। स्कूल के फ्रंट पर पिलरों व बनेरों पर शानदार नक्काशी की गई है। स्कूल की स्थापना प्रिंसिपल राम लाल ने की थी और इस इमारत का निर्माण आर्य समाज के महात्मा मुंशी राम की देखरेख में हुआ। इसाई मिशनरियों के शिक्षण संस्थानों में जिस तरह सभी तरह की सुविधाएं थी। उसी तर्ज पर इस स्कूल के अंदर भी हर तरह की सुविधाएं दी गई। बच्चों के लिए तब यहां आडिटोरियम व लेबोरेटरीज भी बनाई गई। यही नहीं इस स्कूल में आजादी से पहले बच्चों के बैठने के लिए बैंच दिए गए।

आर्य स्कूल, लुधियाना।

इमारत के रंग में अब तक कोई बदलाव नहीं

स्कूल तब पौने दो किले जमीन में बनाया गया था। इमारत को जमीन के मध्य में बनाया गया था। स्कूल के मुख्य गेट पर ओउम् लिखा गया है जबकि गेट के एक तरफ स्वस्ति वाचन व दूसरी तरफ गायत्री मंत्र लिखा गया है, ताकि विद्यार्थी स्कूल पहुंचते ही ओउम्, स्वस्ति वाचन और गायत्री मंत्र का स्मरण कर सकें। इमारत के रंग में तब से लेकर अब तक कोई बदलाव नहीं किया गया। स्कूल प्रिंसिपल की मानें तो निर्माण से लेकर अब तक इस इमारत को रिपेयर की जरूरत नहीं पड़ी। उन्होंने बताया कि कमरों की ऊंचाई 20-20 फीट तक रखी गई थी। यह स्कूल देश को उपराष्ट्रपति जीएस पाठक, थल सेना अध्यक्ष टीएन रैना जैसी शख्सियतें दे चुका है। स्थापना से लेकर अब तक हजारों विद्यार्थियों को यह स्कूल शिक्षा दे चुका है।

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