पाप पर चिंतन व मंथन जरूरी : मुनि भूपेंद्र कुमार
वियना तत्व दर्शन में 18 पाप का विवेचन किया गया है। जब व्यक्ति अपने जीवन में इन पापों की ओर अग्रसर होता है तब उसका जीवन कलुषित बनना प्रारंभ हो जाता है और जब वह पापों से अपने आप को निवृत्त करना प्रारंभ कर देता है।
संस, लुधियाना : वियना तत्व दर्शन में 18 पाप का विवेचन किया गया है। जब व्यक्ति अपने जीवन में इन पापों की ओर अग्रसर होता है, तब उसका जीवन कलुषित बनना प्रारंभ हो जाता है और जब वह पापों से अपने आप को निवृत्त करना प्रारंभ कर देता है। तब उसका जीवन है वह उज्जवल से उज्जवल तमन्ना प्रारंभ हो जाता है। यह उक्त विचार 18 पाप कार्यशाला तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आयोजित को संबोधित करते हुए मुनि भूपेंद्र कुमार ने व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान परिवेश में 18 पापों के बारे में चितन मंथन करना बहुत ही जरूरी है। जो व्यक्ति आत्मचितन के साथ में इन पापों को छोड़ना प्रारंभ कर देता है, वह व्यक्ति इस महा भयानक दुशमकाल में भी अपने जीवन को त्याग के पथ पर आगे बढ़कर प्रकाश में बनाने में सफलता प्राप्त कर लेता है। एक बार जब हमारे को भीतर के प्रकाश का एहसास हो जाता है । तब अपने आप ही कल मस्ता का सारा अंधकार है। वह पलायन करना प्रारंभ कर देता है। हमारा जीवन है पावन और पवित्रता के साथ में सबके लिए प्रेरणा का एकमात्र स्त्रोत भी बन जाता है। इस दौरान मुनि पदम कुमार गायन से समां बांधा।