सिर्फ पाप के कारण दुखी हैं लोग : अचल मुनि
श्रमण संघीय सलाहकार भीष्म पितामह तपस्वी रत्न गुरुदेव सुमित प्रकाश मुनि म. सा. के सुशिष्य अचल मुनि भरत मुनि एसएस जैन स्थानक शिवपुरी में सुखसाता विराजमान हैं। गुरुदेव अचल मुनि ने कहा कि दुख भगवान देते नहीं कोई भी जीव दुख नहीं चाहता पर हर कोई दुखी है क्यों? अपने पाप के कारण। पाप ही उसे दुखी करती है। पापों के 18 भेद बताएं है। उसमें हिसा झूठ चोरी दुराचार आसक्ति आदि प्रमुख रूप में आते है।
संस, लुधियाना : श्रमण संघीय सलाहकार भीष्म पितामह, तपस्वी रत्न गुरुदेव सुमित प्रकाश मुनि म. सा. के सुशिष्य अचल मुनि, भरत मुनि एसएस जैन स्थानक शिवपुरी में सुखसाता विराजमान हैं। गुरुदेव अचल मुनि ने कहा कि दुख भगवान देते नहीं, कोई भी जीव दुख नहीं चाहता पर हर कोई दुखी है क्यों? अपने पाप के कारण। पाप ही उसे दुखी करती है। पापों के 18 भेद बताएं है। उसमें हिसा, झूठ, चोरी, दुराचार, आसक्ति आदि प्रमुख रूप में आते है। साहित्य जगत में मान को पाप का मूल कहा गया है। तभी तो गोस्वामी तुलसीदास कहते है दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। जीवन में अहंकार आता है तो विनय सदगुण गायब हो जाता है। जिस जीवन में विनय धर्म नहीं है, उसका जीवन झूठमय सर्व गुण हीन हो जाता है। अपने जीवन को विनम बनाना चाहिए। क्योंकि जहां विनय है, वहीं पर सर्व गुणों का समावेश हो जाता है।
भरत मुनि कहा कि दान, पुण्य, त्याग तप और संयम में भावना का बड़ा महत्व है। दान देते हुए दुर्भाव है। या अहंकार से दान दिया जा रहा है। क्रिया अच्छी होते हुए भी भाव अच्छे न होने से वह दान क्रिया भी पुण्य को रुप ले नहीं ले सकता है। नाग श्री का उदाहरण देते हुए गुरुदेव ने कहा कि नाग श्री ने बडे़ तपस्वी संत को कड़वा तुंवा भोजन के रुप में दिया। क्रिया तो ऊपर से देखने में अच्छी थी। पर उसके भाव अच्छे नहीं थे। परिणाम स्वरुप दान करके भी दूषित भाव के कारण संसार ही बढ़ाया, जन्म मरण का कारण बन जाता है। अत: कोई शुभ कार्य करते हुए अपने भाव सदा उज्जवल सात्विक बनाएं रखे। इस अवसर पर संघरत्न विनीत जैन व महामंत्री राजीव जैन ने कहा कि गुरुदेवों के सानिध्य में मातृ पितृ दिवस समारोह रविवार को 8.15 से 9.15 तक होगा।