दुनिया के रोकने से पहले खुद को रोक लो : रचित मुनि

एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि हम बड़े गौर से और बड़े जोश से एक नारा लगाते हैं। अहिसा परमो धर्म इस नारे से हम जैन धर्म की पहचान कराते हैं लेकिन बोलते वक्त तो हम जोर शोर से बोलते हैं। परंतु जीवन में उतारते हुए कंजूसी क्यों कर जाते हैं जो भी हम मुंह से बोलते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 07:11 PM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 07:11 PM (IST)
दुनिया के रोकने से पहले खुद को रोक लो : रचित मुनि
दुनिया के रोकने से पहले खुद को रोक लो : रचित मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि हम बड़े गौर से और बड़े जोश से एक नारा लगाते हैं। अहिसा परमो धर्म:, इस नारे से हम जैन धर्म की पहचान कराते हैं, लेकिन बोलते वक्त तो हम जोर शोर से बोलते हैं। परंतु जीवन में उतारते हुए कंजूसी क्यों कर जाते हैं, जो भी हम मुंह से बोलते हैं। उन शब्दों के अनुसार या अनुरूप हमारी जिदगी होती है या नहीं। यह सोचने वाली बात है। अगर यह सोच है तो हमारा सुधार होना प्रारंभ हो जाएगा और एक दिन अवश्य ही महान होंगे। महान बन जाएंगे, फिर आपके जीवन में परिवर्तन आना प्रारंभ हो जाएगा, कि बोल क्या रहा हूं और मैं कर क्या रहा हूं।

फिर आप सोचोगे कि मैं दूसरों को नहीं, खुद को धोखा दे रहा हूं। इसलिए मेरे प्यारों दुनिया के रोकने से पहले अपने आप को रोक लो। नही तो इससे बड़ी बदनामी कोई नहीं है। कम से कम बोलने से पहले सोच तो लो तू क्या कर रहा है। आप लोग एक नारा और लगाते हो। ये महाप्रभु महावीर का संदेश है। जीयो और जीने दो पर कभी इस पर विचार किया कि इसका मतलब क्या है। इसका मतलब यह नहीं, कि कोई भूखा मर रहा है तो मरने दो, कोई उजड़ रहा है तो उजड़ने दो, यदि कोई नग्न अवस्था में घूम रहा है। तो उसका तन ढकने के लिए उसे वस्त्र ना दो। जिस प्रकार आप जीवन जीना चाहते हो, उसी प्रकार दूसरे भी जीवन जीना चाहते हैं ।

इसी दौरान हिमाचल रत्न श्री जितेंद्र मुनि जी ने सत्संग का महत्व बताते हुए कहा कि सत्संग मोक्ष का दरवाजा खोलता है। सत्संग जीवन जीने की कला सिखाता है जो इस कला को जान लेता है वह अपने जीवन को सफल बना लेता है। महापुरुषों ने सत्संग ओर संत दर्शन को दुर्लभ बताया है असीम पुण्य से ही सत्संग की प्राप्ति होती है सत्संग से जीव, पाप पुण्य धर्म अधर्म, संसार और मोक्ष के मार्ग को समझता है।

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