किसी की मदद कर अभिमानी नहीं, कृतज्ञ बने: रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि भाव प्रेम अमृतधारा इन पदों की प्रत्येक पंक्ति में आत्मा का अमृत भरा है। इस अमृत का पान आप कितना कर पाएंगे यह तो नहीं पता लेकिन आप लोग इस अमृत पान के रसों का श्रवण करते करते आपकी ²ष्टि में आपकी जीवनशैली में परिवर्तन आए तभी सौभाग्य की बात होगी।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि भाव, प्रेम, अमृतधारा इन पदों की प्रत्येक पंक्ति में आत्मा का अमृत भरा है। इस अमृत का पान आप कितना कर पाएंगे, यह तो नहीं पता लेकिन आप लोग इस अमृत पान के रसों का श्रवण करते करते आपकी ²ष्टि में आपकी जीवनशैली में परिवर्तन आए तभी सौभाग्य की बात होगी। हर व्यक्ति को अपनी विचारधारा को ईमानदारी से जानने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि किसी ना किसी भावना से व्यक्ति जुड़ा हुआ होता है। इसी आधार पर व्यक्ति अपनी व्याख्या कर व्यक्तित्व की परिभाषा को जान सकता है, यानी परमात्मा के योग्य वह है या नहीं इसका भी अनुमान लगाया जा सकता है। शस्त्र और शास्त्र बनाने वालों का जिक्र करते हुए कहा कि जो दूसरों की कमियां निकालने के लिए शास्त्र पढ़ते हैं उनके लिए शास्त्र शास्त्र नहीं बल्कि शस्त्र होता है। उन्होंने कहा कि किसी की मदद करके अभिमानी नहीं, बल्कि कृतज्ञ बनना चाहिए।
इसी दौरान हिमाचल रत्न श्री जितेंद्र मुनि म. ने कहा कि इस संसार मे चार प्रकार के व्यक्ति होते है। कुछ लोग अंधकार से प्रकाश की ओर जाते हैं। कुछ लोग प्रकाश से अंधकार की ओर जाते हैं। कुछ लोग अंधकार से ही अंधकार की ओर जाते हैं और कुछ लोग प्रकाश से प्रकाश की ओर जाते हैं।