साधु आनंद के लिए आहार नहीं ग्रहण करते: रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा धर्म का आधार शरीर है। अत शरीर धारण किए रखने के प्रयोजन से ही साधु आहार ग्रहण करता है। स्वाद अथवा आनंद के लिए नहीं। भिक्षा से ही उसे आहार सुलभ होता है। अन्य कोई माध्यम है ही नहीं। भिक्षा से प्राप्त निर्दोष आहार की उपयोग-विधि ही इस भावना का प्रतिपाद्य विषय है।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा धर्म का आधार शरीर है। अत: शरीर धारण किए रखने के प्रयोजन से ही साधु आहार ग्रहण करता है। स्वाद अथवा आनंद के लिए नहीं। भिक्षा से ही उसे आहार सुलभ होता है। अन्य कोई माध्यम है ही नहीं। भिक्षा से प्राप्त निर्दोष आहार की उपयोग-विधि ही इस भावना का प्रतिपाद्य विषय है। प्रथम सिद्धांत ही यह है कि भिक्षा में प्राप्त आहार आदि साधु की निजी संपति नहीं है। यह साधु सभी एक से होते नहीं। कोई स्वस्थ है, तो कोई रोगी भी हो सकता है। कोई दुर्बल भी। संघ के आचार्य ही सभी साधुओं के संयम-संचालन का दायित्व बहन करते है। जिस साधु को भिक्षा में जो वस्तु मिली है, वहीं उसका उपयोग करे।
हिमाचल रत्न जितेंद्र मुनि महाराज ने कहा कि जो साधक जिज्ञासु है, वो कहीं से भी ज्ञान प्राप्त कर सकता है। पर उसमें वो ज्ञान लेने की भूख हो। इंसान को बोलने की कला आनी चाहिए, क्योंकि जुबान से ही आप अपना मित्र बना सकते है और इसी से दुश्मन।