संसार में धर्म ही शरणदाता : अनुपम मुनि
तपसम्राट श्री सत्येंद्र मुनि महाराज सा. लोकमान्य संत श्री अनुपम मुनि म. सा. मधुरभाषी श्री अमृत मुनि म. सा. विद्याभिलाषी अतिशय मुनि म. सा. ठाणा-4 जैन स्थानक नूरवाला रोड में सभा हेतु ज्ञान की धारा बही रह है। श्रावक श्राविकाएं जप तप कर धर्ममय के राह पर जा रहे है।
संस, लुधियाना : तपसम्राट श्री सत्येंद्र मुनि महाराज सा., लोकमान्य संत श्री अनुपम मुनि म. सा., मधुरभाषी श्री अमृत मुनि म. सा., विद्याभिलाषी अतिशय मुनि म. सा. ठाणा-4 जैन स्थानक नूरवाला रोड में सभा हेतु ज्ञान की धारा बही रह है। श्रावक श्राविकाएं जप, तप कर धर्ममय के राह पर जा रहे है। इस अवसर पर गुरुदेव अनुपम मुनि ने कहा एक बार जिज्ञासु ने भगवान महावीर से प्रश्न पूछा- आत्म बलवान है? या कर्म बलवान है? तब प्रभु ने फरमाया-आत्मा भी बलवान है, तो कर्म भी बलवान। जब आत्मा म. विषय कषाय, निद्रा और विकथा आदि संसारी भावों में रमण करती है? तो तब कर्म बलवान हो जाते है, आत्मा कमजोर पड़ जाती है। जब आत्मा तप, संयम, ध्यान, दया, समभाव आदि भावों में रमण करती है, तब आत्म बलवान होती है। जब सिंह सो जाता है तो उसे छोटे मोटे क्षुद्र, चूहे आदि भी परेशान करते है। पर जब सिंह जग जाता है। तो मदमस्त हस्ती भी उसकी गर्जना सुनकर भाग जाते हैं। आत्म सिंह को मोह की निद्रा से जगाए तो ऐसा महान पुरुषार्थ करेगा कि इस आत्मा में रहे हुए अनादि कालीन कुसंस्कार दूर हो जाएंगे। अत: सदपुरुषार्थ में आलस्य कभी न करें। उन्होंने कहा कि संसार में धर्म ही एक शरण दाता है। धन, पद प्रतिष्ठा परिवार ये कभी आत्मा के सहारे नहीं हो सकते है। संसार के सभी सहारे समय आने पर बेसहारे बन जाते है,क्योंकि धन तिजोरी में ही पड़ा रहेगा। पत्नी द्वार तक विदायी देने जाएगी। इष्ट, बंधु शमशान भूमि तक कंधा देकर क्रिया कांड कर आएंगे। अंत में इस जीव को अकेला ही स्वकृत पुण्य और पाप के फल भोगने पडे़गे।