कष्टों का निवारण अनेकांतमयी जैन दर्शन से संभव: अनुपम मुनि

तपसम्राट श्री सत्येंद्र मुनि महाराज सा. लोकमान्य संत श्री अनुपम मुनि म. सा. मधुरभाषी श्री अमृत मुनि म. सा. विद्याभिलाषी अतिशय मुनि म. सा. ठाणा-4 जैन स्थानक नूरवाला रोड़ में सुखसाता विराजमान है। इस अवसर पर गुरुदेव अनुपम मुनि ने कहा कि आत्मा ही तो एटम है और समस्त दुनियां में शक्ति का संचार करती है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 07:33 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 07:33 PM (IST)
कष्टों का निवारण अनेकांतमयी जैन दर्शन से संभव: अनुपम मुनि
कष्टों का निवारण अनेकांतमयी जैन दर्शन से संभव: अनुपम मुनि

संस, लुधियाना : तपसम्राट श्री सत्येंद्र मुनि महाराज सा., लोकमान्य संत श्री अनुपम मुनि म. सा., मधुरभाषी श्री अमृत मुनि म. सा., विद्याभिलाषी अतिशय मुनि म. सा. ठाणा-4 जैन स्थानक नूरवाला रोड़ में सुखसाता विराजमान है। इस अवसर पर गुरुदेव अनुपम मुनि ने कहा कि आत्मा ही तो एटम है और समस्त दुनियां में शक्ति का संचार करती है। यदि आप अध्यात्म के आधार पर इसका विचार करते है तो फिर आपको जैन दर्शन की ओर लौटना पड़ेगा। नागरिकता और राष्ट्रीयता इन दिनों हर देश के मानव का आधार है, लेकिन जब तक समानता और स्वतंत्रता नहीं मिलती। यह शब्द खोखले मालूम पड़ते है। मनुष्य के कष्टों का निवारण अंतर्राष्ट्रीय आधार पर उसका उद्धार केवल अनेकांतमयी जैन दर्शन के माध्यम से ही संभव है।

उन्होंने कहा कि दर्शन ही नहीं, बल्कि संस्कृति, कला, संगीत एवं भाषा का यह अद्भुत संगम है। जैन तीर्थंकरों ने संस्कृत को अपनाकर पाली और प्राकृत, अर्ध-मागधी को अपनाया, क्योंकि वे जैन दर्शन को विद्वानों तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। बल्कि सामान्य आदमी तक पहुंचे और उसके जीवन का कल्याण करें। उन्होंने कहा कि जैन धर्म ने किया है समानता और स्वतंत्रता के साथ उनका स्वाभिमान स्थापित किया है। जैन धर्म का भेद-विज्ञान को साध्वी बना देने का चमत्कार केवल जैन धर्म ने किया है।

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