दूसरों का सुख हमारे लिए दुख का कारण बन जाता है: रचित मुनि

एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि जो आप अपने लिए चाहते हो। वही दूसरों के लिए चाहते हो नहीं चाहते हो न। सच्चाई यह है कि जो हम अपने लिए चाहते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 05:56 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 05:56 PM (IST)
दूसरों का सुख हमारे लिए दुख का कारण बन जाता है: रचित मुनि
दूसरों का सुख हमारे लिए दुख का कारण बन जाता है: रचित मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि जो आप अपने लिए चाहते हो। वही दूसरों के लिए चाहते हो, नहीं चाहते हो न। सच्चाई यह है कि जो हम अपने लिए चाहते हैं। वह दूसरों के लिए नहीं चाहते। चाहते हो तो भी यही चाहते हो, कि भगवान सभी की दुकान बना देना, पर मेरी सबसे अलग बना देना। बच्चे सभी को अच्छे दे देना, पर मेरे को और भी अच्छे दे देना। घरवाली सभी को दे देना पर मेरी घरवाली कुछ अलग ही हो। बस मेरी चीज कुछ अलग से दिखाई दे। थोड़ा अंतर तो हो ना। आपकी बात छोड़ो आज एक साधु दूसरे साधु की प्रशंसा सुनकर खुश नहीं होता, अपितु ईष्र्या करने लग जाता है, तो सोचता हूं। आप में और हम में क्या अंतर है? प्रत्येक साधु चाहता है कि मेरे भक्तों की भीड़ ज्यादा लगे और मैं कह सकूं कि मैं बादशाह हूं। अंतर के अवलोकन की बात है, जब तक आत्म-निरीक्षण नहीं होवेगा, तब तक जिदगी का परिवर्तन नहीं हो सकता।

उन्होंने आगे कहा कि दूसरों का सुख हमारे लिए दुख का कारण बन जाता है। अगर आप कितनी भी सामायिक, संध्या, जप तप, कर रहे हैं परंतु किसी दुखी को देखकर दिल नहीं पसीजा, तो कोई फायदा नहीं धर्म ध्यान करने का। इसी दौरान श्री जितेंद्र मुनि जी म. ने उत्तराध्ययन सूत्र का आठवां अध्याय निर्लोभता, कपिल मुनि के ²ष्टांत से उनकी निर्लोभता का वर्णन किया। जैसे-जैसे लाभ बढ़ता है, वैसे-वैसे लोभ बढ़ता जाता है, जहां पर लाभ है, वहीं पर लोभ है, क्योंकि लाभ से ही लोभ की वृद्धि होती है।

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