भक्ति में वह शक्ति है जो भक्त को भगवान बना देती है: जितेंद्र मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि सत्संग प्रवचन जोड़ने का काम करता है। एक-दूसरे से मिलने मिलाने का काम करता है सत्संग। जब सत्संग लगता है तो चारों दिशाओं से लोग आते हैं। चारों दिशाओं से भक्त आते हैं। जिनवाणी का श्रवण करने यह सब किसका प्रभाव है यह है वीतराग वाणी का प्रभाव।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि सत्संग प्रवचन जोड़ने का काम करता है। एक-दूसरे से मिलने मिलाने का काम करता है सत्संग। जब सत्संग लगता है तो चारों दिशाओं से लोग आते हैं। चारों दिशाओं से भक्त आते हैं। जिनवाणी का श्रवण करने, यह सब किसका प्रभाव है, यह है वीतराग वाणी का प्रभाव। जिससे हम बरसों से नहीं मिले, कुछ ही क्षणों में सत्संग हमारे को उनसे मिला देता है तो सत्संग के दरबार का दरबारी होना यह आपका सौभाग्य है और सत्संग सौभाग्यशाली लोगों को प्राप्त होता है। सत्संग का भाव आने वाले दिनों में मुश्किल होता जा रहा है, लोग आज स्मार्ट तो बनना पसंद करते हैं, लेकिन सरल बनना नहीं। सरल बनना, यानि परमात्मा के नजदीक जाना। सत्संग में जाकर खुद से मिलान होता है खुद से मुलाकात होती है।
हिमाचल रत्न श्री जितेंद्र मुनि जी म. ने कहा कि भक्ति में वह शक्ति है जो भक्त को भगवान बना देती है। भक्ति सूली को सिंहासन बना देती है। सेठ सुदर्शन का उदाहरण देते हुए कहा कि सेठ सुदर्शन के अंदर पंच परमेष्ठी भगवान के प्रति श्रद्धा थी, भक्ति थी णमोकार महामंत्र का स्मरण किया तो उस वक्त सूली भी सिंहासन में परिवर्तित हो गई। यह सब श्रद्धा का खेल है।