वंदन कर्मों के बंधन को तोड़ देती : रचित मुनि

एसएस जैन स्थानक जनता नगर में चातुर्मास हेतू विराजित जितेंद्र मुनि जी म.के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने रविवार की सभा कहा कि वंदन कर्मों के बंधन को तोड़ देती है। आवश्यकता है उस वंदन में कोई स्वार्थ की भावना या कामना ना हो। भाव में शुद्धता हो दिल में श्रद्धा का भाव हो तब जाकर हमारी वंदना कर्मों की निर्जरा का कारण बनती है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 06:08 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 06:08 PM (IST)
वंदन कर्मों के बंधन को तोड़ देती : रचित मुनि
वंदन कर्मों के बंधन को तोड़ देती : रचित मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में चातुर्मास हेतू विराजित जितेंद्र मुनि जी म.के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने रविवार की सभा कहा कि वंदन कर्मों के बंधन को तोड़ देती है। आवश्यकता है उस वंदन में कोई स्वार्थ की भावना या कामना ना हो। भाव में शुद्धता हो, दिल में श्रद्धा का भाव हो, तब जाकर हमारी वंदना कर्मों की निर्जरा का कारण बनती है।

उन्होंने आगे कहा कि हमारे एक आचार्य हुए श्री अमोलक ऋषि म., आचार्य श्री जी विनम्रता, सरलता आदि समस्त गुणों की प्रतिमूर्ति थे। अजमेर में साधु सम्मेलन हुआ, उस सम्मेलन में प्रात: काल 4 बजे सिर पर चादर ओढ़ कर आचार्य प्रवर सभी कमरों में जाते हैं और लघु गुरु सभी मुनियों को सभक्ति वंदन करते । एक और दिन उपाध्याय प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी महाराज ने सोचा- ये संत कौन है ? जो हर रोज चुपचाप आता है और वंदना करके चला जाता है उन्होंने सिर से चादर हटा कर देखा तो दंग रह गए । सहसा मुख से निकला - भगवन आप लघु मुनियों को वन्दन क्यों करते हो ? आचार्य श्री जी बोले संत भगवान का ही रूप होते हैं। क्या मालूम कौन संत निकटभवी हो ,मैं आत्मार्थ सिद्धि के लिए सभी को वंदन करता हूं। यह सुनकर उपाध्याय श्री जी धन्य धन्य कहते हुए चरणों में नतमस्तक हो गए । इसी क्रम में विद्याभिलाषी श्री तेजस मुनि म. ने कहा व्यक्तित्व विकास के तरीके खोजते समय चरित्र के मुद्दे पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। इस दौरान जितेंद्र म. ने फरमाया की 3 प्रकार की परिषद होती है। विज्ञ परिषद, अविज्ञ परिषद दुर्विदग्धा परिषद जिस परिषद में तत्व जिज्ञासु आस्थावान आत्मानवेषी आदि गुणों से संपन्न श्रोता हो वही सर्वोत्तम परिषद है।

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