प्रगति के लिए एक ही दिशा में निरंतर कदम उठाना जरूरी : रचित मुनि

एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि एक संन्यासी था। उसका कार्यकलाप दो भागों में बंटा था। थोड़ा अध्यात्म की साधना में और थोड़ा समाज सेवा में पूरा रस न अध्यात्म की साधना में था और न समाज सेवा में।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Oct 2021 06:22 PM (IST) Updated:Fri, 22 Oct 2021 06:22 PM (IST)
प्रगति के लिए एक ही दिशा में निरंतर कदम उठाना जरूरी : रचित मुनि
प्रगति के लिए एक ही दिशा में निरंतर कदम उठाना जरूरी : रचित मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि एक संन्यासी था। उसका कार्यकलाप दो भागों में बंटा था। थोड़ा अध्यात्म की साधना में और थोड़ा समाज सेवा में, पूरा रस न अध्यात्म की साधना में था और न समाज सेवा में। वह प्रमाणिकता से न साधना कर पाता, और न समाज सेवा। उसने एक विचित्र नजारा देखा। एक ओर कीचड़ है दूसरी और स्वच्छ पानी। एक व्यक्ति पहले कीचड़ में लथपथ होता है और फिर स्वच्छ पानी से नहाता है। ऐसे बार-बार करता जा रहा है। सन्यासी ने व्यंग भरे शब्दों से पूछा ये क्या नासमझी कर रहे हो? वह व्यक्ति ज्ञानी संत था । उसने उत्तर दिया। दूसरे को नासमझी तत्काल दिखती है, अपनी नहीं। जैसी नासमझी मैं कर रहा हूं। वैसे तुम भी कर रहे हो। कभी अध्यात्म की साधना में डूबते हो और कभी समाज सेवा में। अध्यात्म की साधना सब कुछ है तो समाज सेवा की क्या जरूरत है? समाज सेवा सब कुछ है तो अध्यात्म साधना की क्या जरूरत। संन्यासी संभला। कान पकड़े, संत के पैरों में पड़ा और कहने लगा आप मेरे गुरु हैं। अब मैं धर्म साधना में डूबकर एक ही दिशा में आगे बढूंगा। कहने का भाव है कि एक दिशा में निरंतर कदम आगे बढ़ाने से व्यक्ति प्रगति करता है।

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