भगवान महावीर भाग्यवादी नहीं, पुरुषार्थवादी थे
महावीर भी जन्म के समय हमारी तरह मानव ही थे। भगवान तो वह उस समय बनें जब उन्होंने स्वयं को जीता। महावीर ने मात्र धर्म में खोई आस्था को ही स्थापित किया।
लुधियाना : माता-पिता की सेवा, आज्ञा मानी भाई की, दीक्षा ले गए वनों में, राह पकड़ी कठिनाई की, कटते गए, घाती कर्म-2 हुआ दूर अंधकार। ऐसे विरला रहे 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी। जैन दर्शन ऐसा मानता है कि भगवान पैदा नहीं होते, वह तो बनते है। महावीर भी जन्म के समय हमारी तरह मानव ही थे। भगवान तो वह उस समय बनें, जब उन्होंने स्वयं को जीता। महावीर ने मात्र धर्म में खोई आस्था को ही स्थापित किया। उनका सूर्यास्त से पहले पहले भोजन करना, फासुक पानी ग्रहण करने का उपदेश आज विश्व इस सिद्धांत को सर्वोपरि मान रहा है। भगवान महावीर के जन्म के समय इस देश की परिस्थितियां बड़ी जटिल थी। देश में धर्म के नाम हिसा का जोर था। भगवान महावीर ने अहिसा और स्वावलंबन पर बल दिया। उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत उतना ही सादा, सरल व स्पष्ट है। उसमें विविधताओं के लिए स्थान नहीं। उनकी जीवन गाथा मात्र इतनी थी कि वे आरंभ के तीन वर्षों में वैभव और विकास के बीच जल से भींगे कमलवत रहे। भगवान महावीर ने जैन समाज को अहिसा और धर्म का रास्ता दिखाया है। हमें उसी प्रकार से उस रास्ते का अनुसरण करना चाहिए। भगवान महावीर ने अपना सारा जीवन समाज की सेवा में अर्पण किया है। हमें उनके जीवन से शिक्षाएं लेनी चाहिए। भगवान महावीर ने सारा जीवन समाज की सेवा में अर्पण किया है। हमें उनके जीवन से शिक्षाएं लेनी चाहिए। रास्ता कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। इसलिए प्रयास करे, सभी हो जाता है। बस आपके अंदर आत्म-विश्वास की भावना जागृत होनी चाहिए। महावीर का युग बड़ी विसंगतियों का युग था। धार्मिक मतवाद परस्पर ज्ञान और भक्ति के सिद्धांतों को समक्ष रखकर झगड़ रहे थे। इस तरह समाज में वैमनस्य का वातावरण पैदा हो गया था। दूसरी ओर पुरुषार्थ और भाग्य को लेकर चितन के क्षेत्र में ऊहापोह मची हुई थी। भगवान महावीर भाग्यवादी नहीं, पुरुषार्थवादी थे। उनकी ²ष्टि में प्रत्येक आत्मा अनंत गुण संपन्न है। अत: उसे अपने इन गुणों को विकसित कर पुरुषार्थ वादी बनना चाहिए। बहुत से धर्म दर्शनों की मान्यता है कि जो भाग्य में है। वह होकर ही रहता है। अत: पुरुषार्थ करने का कोई महत्व नहीं है। भगवान महावीर ने स्पष्ट कहा कि भाग्य अ²श्य है। अर्थात दिखाई नहीं देता और पुरुषार्थ आप के अधीन है। अत: पुरुषार्थ को प्रश्रय दो उसी से आय का भाग्य निर्मित होगा। भगवान महावीर ने पुरुषार्थ करते हुए कर्म को महत्व दिया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति जन्म या जाति से महान नहीं होता, अपितु कर्म से महान होता है। उन्होंने कहा कि कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शुद्र होता है। उच्च कर्मों को करने के कारण ही शुद्र भी पूज्य है। भगवान महावीर का पुरुषार्थ और कर्म सिद्धांत आधुनिक युग में भी महत्वपूर्ण है। भगवान महावीर का सीधा संदेश था कि अपना कर्म और अपना पुरुषार्थ ही मनुष्य को उच्च बनाता है। भारतीय समाज में यदि इस सिद्धांत को स्थान दिया जाए तो यह देश ऊंच-नीच की दीवारों को हटा सकता है। आओ महावीर जयंती पर प्रभु के इस सिद्धांतों तथा संदेशों को आत्मसात करे और एक सशक्त समाज का निर्माण करे।
- मानव रत्न रामकुमार जैन, आल इंडिया जैन कांफ्रेंस मार्गदर्शक