सभी को सुख पहुंचाना अहिसावाद : राम कुमार जैन
भगवान महावीर का युग बड़ी विसंगतियों का युग था। धार्मिक मतवाद परस्पर ज्ञान और भक्ति के सिद्धांतों को समक्ष रखकर झगड़ रहे थे।
संस, लुधियाना : भगवान महावीर का युग बड़ी विसंगतियों का युग था। धार्मिक मतवाद परस्पर ज्ञान और भक्ति के सिद्धांतों को समक्ष रखकर झगड़ रहे थे। इस तरह समाज में वैमनस्य का वातावरण पैदा हो गया था। दूसरी ओर पुरुषार्थ और भाग्य को लेकर चितन के क्षेत्र में ऊहापोह मची हुई थी। भगवान महावीर भाग्यवादी नहीं, पुरुषार्थवादी थे। उनकी दृष्टि में प्रत्येक आत्मा अनंत गुण संपन्न है। भगवान महावीर ने स्पष्ट कहा कि भाग्य अदृश्य है और पुरुषार्थ आप के अधीन है। केवल ज्ञान आत्म बोध प्राप्ति के पश्चात भगवान महावीर ने जो उपदेश जन मानस को दिए थे। उन्हें प्रमुख रूप से चार भागों में विभाजित किया गया -
अहिसावाद: अहिसावाद सभी प्राणियों पर दया करना सिखाता है। सभी प्राणी जीना चाहते है, कोई दुख नहीं चाहता। अत: सभी को सुख पहुंचाना अहिसावाद है।
कर्मवाद: कर्मवाद से अभिप्राय है कि उच्च कर्म से ही व्यक्ति महान होता है और कर्म से ही शुद्ध होता है।
अपरिग्रहवाद:- अपरिग्रहवाद का अर्थ है, आवश्यकता से अधिक संचय न करना। महावीर ने कहा था आवश्यकता की पूर्ति संभव है, इच्छा का नहीं।
अनेकांतवाद:- अनेकांतवाद का अर्थ है हठ का त्याग करना। अनेकांतवाद की दृष्टि से दूसरों की बात में भी सत्यता हो सकती है। अत: दूसरों की बात को स्वीकार करो। यह मत कहो कि मैं जो कहता हूं वहीं सत्य है, परंतु यह कहो कि जो सत्य है, वही मेरा है।
इस बार भगवान महावीर जयंती पर्व 17 अप्रैल को लुधियाना में राज्य स्तरीय रूप से मनाई जा रही है, जिसमें चारों संप्रदायों जैन स्थानकवासी, तेरापंथ, मंदिर मार्गीय, दिगांबर समाज के प्रतिनिधि सहित भारी संख्या में श्रावक शामिल होंगे। प्रस्तुति : मानव रत्न रामकुमार जैन, आल इंडिया जैन कांफ्रेंस मार्गदर्शक