अहंकार का समाधान विनम्रता : रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा की अहंकार दुख का कारण है। जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है। अहंकार का जोर इतना जबरदस्त रहता है कि वह धर्म को भी अधर्म बना देता है और पुण्य को पाप में बदल देता है। मनुष्य की स्थिति बड़ी अजीब है।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा की अहंकार दुख का कारण है। जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है। अहंकार का जोर इतना जबरदस्त रहता है कि वह धर्म को भी अधर्म बना देता है और पुण्य को पाप में बदल देता है। मनुष्य की स्थिति बड़ी अजीब है। वह जीते जी कभी शांत नहीं होता। अहंकार को फुटबाल की उपमा दी गई है। जैसे लोग फुटबाल को तब तक ठोकर मारते हैं जब तक उसमें हवा भरी रहती, हवा निकल जाए तो फिर उसे कोई नहीं छेड़ता। महागुरु प्रभु महावीर ने बडे ही सुंदर शब्दों में फरमाया है कि पत्थर के स्तंभ के समान जीवन में कभी न झुकने वाला अहंकार आत्मा को नरक की ओर ले जाता है तो अहंकार का समाधान विनम्रता में है। जो सुख विनम्रता एवं मृदुता में है, वह अकड़ने में नहीं है।
इस दौरान हिमाचल रत्न श्री जितेंद्र मुनि जी ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने चार प्रकार के श्रावको का वर्णन किया कई श्रोता सीधे सरल जिज्ञासु होते हैं और विवेकशील होते हैं कई लोग पताका के समान होते हैं, जिधर की हवा बहती है उधर ही चल पड़ते हैं। तीसरे प्रकार के श्रावक ठूंठ के समान अखंड होते हैं वे किसी के सामने झुकते नहीं, चौथे प्रकार के लोग इनसे भी कठोर होते हैं वह तो सीधे कांटे के समान चुभने और दुख देने वाले होते हैं। अत: हम सीधे सरल बने ।