चार मास का बंधन नहीं, जप, तप व धर्म का संगम है
साधना का स्वर्णिम अवसर है चातुर्मास। यह चार मास का बंधन नहीं है यह जो तप जप स्वाध्याय व धर्म का संगम है। असमें तपस्वी अपनी तपस्या से दूसरों को प्रेरित करते हैं। चार माह साधु-संतों की संगति से लेकर जप तप कार्यों में अपनी हाजिरी लगानी है।
कृष्ण गोपाल, लुधियाना : साधना का स्वर्णिम अवसर है चातुर्मास। यह चार मास का बंधन नहीं है, यह जो तप, जप, स्वाध्याय व धर्म का संगम है। असमें तपस्वी अपनी तपस्या से दूसरों को प्रेरित करते हैं। चार माह साधु-संतों की संगति से लेकर जप, तप कार्यों में अपनी हाजिरी लगानी है। शास्त्रों में कहा गया है कि चातुर्मास में इधर उधर विचरण न करके शरीर के साथ-साथ मन से भी स्थिर होकर अन्त: करण में वास करना चाहिए। इस पर जैन समुदाय इस पर्व को लेकर अपने-अपने तर्क रखते है।
::::::::::::
संत-मुनियों की संगति का स्वर्ण अवसर है
प्रफुल्ल जैन, विपन जैन श्रमण स्वीटस, मुकेश जैन ने कहा कि चातुर्मास काल आत्म जागृति का कारण होता है। चार महीने का सुदीर्घ समय जिसमें हमें पूजा संत-मुनियों की संगति करने का स्वर्ण अवसर मिला है। संसार की धन दौलत कमाई करते करते वर्षों बीत गए है। फिर भी संतुष्टि नहीं बनी। जो पहले इच्छाएं थी, वहीं आज भी बनी है। संतों के पास जाने मिलती है महामूल्यवान संगति
राजेश जैन बाबी, वीर भूषण जैन, राजेश जैन काला नवकार ने कहा कि जब हम किसी पूज्य संत-महात्मा के पास जाते हैं, उनकी संगति करते हैं तो वह हमारा समय महामूल्यवान बनता है। मुनियों का स्वागत धन वैभव से व आडंबरों से नहीं किया जाता, वह तो श्रद्धा भक्ति तप, त्याग से किया जाता है। जो सच्चा स्वागत होता है। इसमें श्रावक श्राविकाओं को संयम को अपनाकर वृति को प्रभु की ओर लगाना चाहिए। तप, त्याग का पर्व है चातुर्मास
संजय जैन, आदीश जैन, भानु प्रताप जैन ने कहा कि है चातुर्मास का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है, चातुर्मास जहां एक ओर तप त्याग का पर्व है, वहीं वैमनस्य और वैर विरोध को दूर करने का सशक्त माध्यम भी है। चार माह तक चलने वाले इस महापर्व में साधु-साध्वियां समाज में परस्पर भाईचारा, सदभावना और आध्यामियता बनाएं रखने की प्रेरणा देते है।