चातुर्मास के चार माह साधना का स्वर्णिम अवसर

चातुर्मास का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। जैन व बौद्ध भिक्षु चातुर्मास को वर्षावास मानते है तथा इस दौरान परमात्मा की साधना व आराधना में सलंग्न हो जाते है। शास्त्रों में कहा गया है कि चातुर्मास में इधर-उधर विचरण न करके शरीर के साथ-साथ मन से भी स्थिर रखकर अन्तकरण में वास करना चाहिए। स्व द्वारा स्व में स्थित होना ही वर्षावास है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 06:22 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 06:22 AM (IST)
चातुर्मास के चार माह साधना का स्वर्णिम अवसर
चातुर्मास के चार माह साधना का स्वर्णिम अवसर

कृष्ण गोपाल, लुधियाना : चातुर्मास का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। जैन व बौद्ध भिक्षु चातुर्मास को वर्षावास मानते है तथा इस दौरान परमात्मा की साधना व आराधना में सलंग्न हो जाते है। शास्त्रों में कहा गया है कि चातुर्मास में इधर-उधर विचरण न करके शरीर के साथ-साथ मन से भी स्थिर रखकर अन्त:करण में वास करना चाहिए। स्व द्वारा स्व में स्थित होना ही वर्षावास है। परंपरा के अनुसार श्रवण मास की प्रतिपदा को वर्षा ऋतु शुरु होने के कारण चातुर्मास के प्रतिक्रमण के लिए साधु व साध्वियां आषाढ़ पूर्णिमा के संध्याकाल तक एक स्थान पर एकत्रित हो जाते है और धर्म का प्रचार व प्रसार करते है, चातुर्मास सभाएं 23 जुलाई से शुरू हो चुकी हैं। बंधन नहीं है, बल्कि साधना का अवसर है चातुर्मास

अभय कुमार जैन, प्रमोद जैन, धर्मवीर जैन, राकेश जैन ने कहा कि चातुर्मास चार मास का बंधन नहीं है, बल्कि साधना का स्वर्णिम अवसर है। स्वयं को आध्यात्मिकता की गहराई में उतारकर समाज, राष्ट्र व अंधकार में भटक रहे, जन जन के अंतर्मन में ज्ञान की ज्योति जमाने का महत्वपूर्ण अवसर है। विचारों की पवित्रता, आचार की पवित्रता जिदगी का अंग बन जाती है। समकित स्वर्गीय जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करता है। संतों के सानिध्य से जीवन में आता है परिवर्तन

मनीष जैन, संजय जैन फैरो, विशाल जैन ने कहा कि चातुर्मास के दौरान संतों के सानिध्य में रहने से जीवन में परिवर्तन आता है। चूंकि हर धर्म व संप्रदाय में चातुर्मास का महत्व है। इसलिए इस अवधि के दौरान तप, ज्ञान व ध्यान की ओर अग्रसर होना चाहिए। इस दौरान आलस्य को त्यागकर ज्ञान की वृद्धि के लिए उपदेश श्रवण करना चाहिए। सम्यकत्व जीवन से ही जीवन महल का उत्थान प्रारंभ होता है। संयम अपनाकर वृति को प्रभु की ओर लगाएं

राजन जैन केपी, विजय कुमार जैन, संजय जैन इंद्रा हौजरी ने कहा कि चातुर्मास के दौरान श्रावक-श्राविकाओं को संयम को अपनाकर वृति को प्रभु की ओर लगाना चाहिए। स्वाध्याय करने से जीव को शांति मिलती है। भले ही संसार में अनेक वस्तुओं से शांति मिलने की बात कही गयी हो, पर जब तक आत्मिक शांति नहीं होगी, तब तक जीवन सुखी नहीं होगा।

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