सुख की सच्ची शोध आत्मा से करनी चाहिए: मुनि मोक्षानंद
संस, लुधियाना : धर्म की बातें करने वाले तो अनेक लोग मिल जाएंगे, किंतु धर्म का आचरण करने व
संस, लुधियाना : धर्म की बातें करने वाले तो अनेक लोग मिल जाएंगे, किंतु धर्म का आचरण करने वाले विरले लोग होते हैं। धर्म की मात्र बातें करने से कुछ नहीं मिलता, क्योंकि धर्म आचरण की वस्तु है। वर्तमान युग में धर्म से ज्यादा धन का महत्व जीवन में बढ़ता जा रहा है। व्यक्ति धर्म कार्यो को छोड़कर धन कमाने की प्रवृतियों में अधिक रुचिवान है। पहले समय में धर्म की जीवन में प्रमुखता थी और संसारिक कार्य गौण होते थे, परंतु आज संसारिक कार्यो की प्रमुखता है और धर्म गौण हो गया है। जीवन में धर्म ही सुख प्रदान करता है।
यह उक्त पंक्तियां आत्म धर्म कमल हाल में जैनाचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर महाराज के सानिध्य में जारी चातुर्मास सभा में मुनि मोक्षानंद ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि धन से केवल बाह्या साधन मिल सकते है, किंतु सुख नहीं। सुख की सच्ची शोध आत्मा से करनी चाहिए। धन की लालसा ने इंसान को हैवान बना दिया है। प्रतिदिन चोरी, डकैती, लूट पाट की घटनाएं बढ़ती जा रही है। पैसे की खातिर भाई भाई का शत्रु बन जाता है, रिश्तों में भी केवल पैसे की प्रधानता रह गई है। धन की दौड़ में भागते भागते जीवन पूरा हो जाता है,परंतु लालसा का अंत नहीं आता। जिसके पास गाड़ी बंगला, नौकर चाकर या धन दौलत है, वह व्यक्ति अमीर नहीं, बल्कि जिसके पास आज्ञाकारी पुत्र है। पतिव्रता स्त्री है और कल्पवृक्ष के समान माता पिता घर आगम में रहते है, भले आर्थिक दृष्टि से वह कमजोर होगा, लेकिन दुनिया में सबसे अमीर व्यक्ति वहीं माना जाएगा। धन जीवन व्यवहार चलाने का साधन हो सकता है, परंतु जीवन का सर्वस्व नहीं। जीवन यापन के लिए धन आवश्यक हो सकता है किंतु धन के लिए जीवन की गंवाना नहीं चाहिए।
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मासक्षमण के दो तपस्वियों ने वरघोड़ा यात्रा निकाली
गच्छाधिपति नित्यानंद सूरीश्वर महाराज आदि सूरी भंगवतों की निष्ठा में तपस्या का क्रम जारी है। जालधंर निवासी मनोहर लाल जैन के 71 उपवास की महान तपस्या का पारण संपन्न हो चुका है। इसी उपलक्ष्य में कुसुम जैन धर्म पत्नी अशोक जैन पट्टी वाले, तथा यतिन जैन पुत्र राजेश जैन राजा के मासक्षमण 30 उपवास की पचक्खावनी पर शाही दवाखाने के नजदीक वरघोड़ा यात्रा निकाली गई जो आत्म धर्म कमल हाल में संपन्न हुई। इस दौरान गच्छाधतिपति जी से दोनों तपस्वी ने अपनी तपस्या के अंतिम उपवास का पचक्खान ग्रहण कराया।