चार साल में भी नहीं सुलझा जीएसटी का ताना-बाना

देश में जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर-जीएसटी लागू किया गया तब सरकार ने जोर शोर के साथ इसके फायदे गिनाए थे लेकिन जीएसटी पिछले चार साल से उद्यमियों एवं व्यापारियों के लिए जी का जंजाल बना हुआ है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 07:15 AM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 07:15 AM (IST)
चार साल में भी नहीं सुलझा जीएसटी का ताना-बाना
चार साल में भी नहीं सुलझा जीएसटी का ताना-बाना

मुनीश शर्मा, लुधियाना

देश में जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर-जीएसटी लागू किया गया, तब सरकार ने जोर शोर के साथ इसके फायदे गिनाए थे, लेकिन जीएसटी पिछले चार साल से उद्यमियों एवं व्यापारियों के लिए जी का जंजाल बना हुआ है। हालत यह है कि इसमें अब तक कई संशोधन हो चुके हैं। यह सिस्टम इतना पेचीदा है कि इसे समझने में अभी तक दिक्कत आ रही है। जीएसटी में सब कुछ आनलाइन किया गया है, लेकिन रिफंड वक्त पर नहीं मिल रहा है। उद्यमियों एवं व्यापारियों का वर्किंग केपिटल रिफंड में अटक रहा है। इतना ही नहीं जीएसटी से पहले चलने वाली वैल्यू एडेड टैक्स-वैट प्रणाली का रिफंड भी अभी तक नहीं मिला है। दैनिक जागरण के राउंड टेबल कांफ्रेंस में उद्यमियों ने जीएसटी को लेकर अपनी दिक्कतें साझा करने के साथ ही कई सुझाव दिए कि जीएसटी सिस्टम को विदेशों की तर्ज पर सरल, पारदर्शी बनाया जाए, ताकि इसका लाभ उद्योग व्यापार जगत के साथ साथ सरकार को भी हो। -- रिफंड के लिए डाक्यूमेंटेशन क्यों

एक तरफ तो सरकार सारे कामकाज को डिजिटल करने को तरजीह दे रही है, लेकिन जीएसटी रिफंड को लेकर भारी भरकम डाक्यूमेंटेशन करवाई जा रही है। इसकी आड़ में कई-कई महीनों तक रिफंड को रोक दिया जाता है। सरकार को जीएसटी बिल भरने के बाद रिटर्न के साथ-साथ रिफंड को आटोमेशन से जनरेट करना चाहिए। अगर प्रक्रिया सरल हो तो दो दो साल तक रिफंड को परेशान न होना पड़े।

-- गौरव गोयल, गौरव इंडस्ट्रीयल कार्पोरेशन

-- अपराधी को मिले सजा, बाकियों को रिफंड न रूके

सरकार की ओर से जीएसटी सिस्टम देश हित के लिए बनाया गया है, लेकिन इसकी प्रक्रिया व्यापारियों को बेहद परेशान कर रही है। इस सिस्टम को तोड़कर बोगस बिलिग करने वालों पर सरकार सख्त कार्रवाई करे, लेकिन जो लोग सही काम कर रहे हैं और रिटर्न के साथ जीएसटी जमा करवा रहे हैं, उन्हें किसी अन्य की गलती के लिए स्क्रूटनी में न डाला जाए। कई बार देखने में आया है कि अगर किसी क्लाइंट की ओर से गलत काम किया गया हो, तो सही कंपनी का रिफंड भी रोक दिया जाता है। इसमें संशोधन होना चाहिए। -- ईश्वर सिंह, अजायब इंटरनेशनल -- जीएसटी की दरें एक सामान हो जीएसटी की दरों को लेकर सरलीकरण करना चाहिए, क्योंकि कंपलीट साइकिल की बात करें, तो इस पर जीएसटी अलग और इसके निर्माण के लिए खरीदे जाने वाले मैटीरियल पर जीएसटी दर अलग है। ऐसे में तैयार सामान पर इनपुट लेने के लिए भारी परेशानी होती है। अगर सरकार एक जैसी जीएसटी दर कर दे, तो सारे सिस्टम में यह समस्या खत्म हो जाएगी। इसके साथ ही रिफंड को इंकम टैक्स रिटर्न की तरह आटो मोड पर किया जाना चाहिए।

-- अश्वनी गोयल, क्यूट साइकिल प्राइवेट लिमिटेड

-- रिफंड लटकने से बैंक ब्याज इंडस्ट्री को भरने पड़ रहे

जीएसटी के रिफंड को लेकर लंबे अर्से से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके पीछे कहीं न कहीं अफसरशाही भी एक बड़ा कारण है। इसकी के चलते बोगस बिलिग भी तेजी से अग्रसर हो रही है। रिफंड कई-कई महीनों तक अटका रहता है, इसके चलते बैंकों की लिमिट के लिए व्यापारियों को ब्याज भरने पड़ रहे हैं। देरी होने पर ब्याज देने का प्रावधान है, लेकिन उद्यमियों को अपनी मूल रकम के लिए दो चार होना पड़ता है, अभी तक वैट रिफंड भी अटका है।

-- टीआर मिश्रा, मिश्रा ब्वायलर्स

-- बार-बार होने वाले बदलाव करते हैं परेशान

जीएसटी लागू हुए कई साल बीत गए हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया में कई बार बदलाव हो चुके हैं। इसमें रिटर्न फाइल करने में भी समय-समय पर बदलाव आने से इंडस्ट्री को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अभी तक कई कंपनियों के वैट रिफंड तक नहीं मिले हैं, इसके लिए कंपनियों को ब्याज देने पड़ते हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि इसका सरलीकरण करे। इसके साथ ही रिफंड के लिए रिटर्न के आधार पर आटो जनरेटिड रिफंड प्रक्रिया जारी करनी चाहिए। -- राकेश कपूर, पैरामाउंट इंपेक्स

-- रिटर्न दाखिल करने में छूट नहीं, तो रिफंड में क्यों

सरकार की ओर से नियम को लागू करवाकर व्यवस्था को बेहतर करने का काम किया जाता है, लेकिन खुद ही इसका पालन करने में सरकार फिसड्डी साबित होती है। जीएसटी समय से जमा न करवाने और रिटर्न फाइल करने पर सख्त कार्रवाई को लेकर तो कानून बनाया गया है। लेकिन रिफंड समय से न दिए जाने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी, इसको लेकर कोई कानून नहीं है। रिफंड प्रक्रिया के लिए भी आटो जनरेटिड प्रक्रिया को लागू करना चाहिए। -- हितेश डंग, अंकल फू़ड्स

एक देश एक टैक्स का हो प्रावधान

जीएसटी को लागू करने के पीछे मकसद उद्यमियो को सिगल टैक्स प्रणाली का हिस्सा बनाना था। लेकिन अभी भी स्लैब अलग अलग होने से कारोबारियों को कई तरह के टैक्स पचड़ों से निकलना पड़ रहा है। सरकार को एक देश एक टैक्स को लागू करने के लिए सिगल स्लैब हर सेक्टर के लिए बनानी होगी। ताकि यह सरलीकरण टैक्स हो और एक सिगल स्लैब टैक्स के जरिए इंडस्ट्री काम कर सके।

-- दीपक गोयल, क्यूट साइकिल

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