दम तोड़ रही लुधियाना की ‘Life Line’, कोविड से पहले 11 रूटों पर चलती थी 83 सिटी बसें, केवल 25 बची
कोरोना महामारी के कारण सिटी बस सर्विस को बंद किया गया। उस समय 11 में से छह रूटों पर सिटी बस चल रही थी। कोरोना के बाद अब कंपनी सिर्फ दो रूटों पर सिटी बस चल रही है। 83 में से मात्र 25 बसें इस वक्त चल रही हैं।
राजेश भट्ट, लुधियाना। ट्रांसपोर्ट व्यवस्था किसी भी शहर की लाइफलाइन होती है। बड़े महानगर लुधियाना के लिए यह और भी अहम हो जाती है। सस्ती यातायात सुविधा से शहर विकास के रास्ते पर दौड़ने लगता है। लुधियाना पंजाब की आर्थिक राजधानी है फिर भी यह सस्ती, सुगम ट्रांसपोर्ट व्यवस्था देने में पिछड़ गया है। अधिकारियों की उदासीनता से 12 साल पहले 65.20 करोड़ रुपये खर्च कर जो सिटी बस सर्विस शुरू की गई थी वह अब दम तोड़ चुकी है। केवल 2 रूटों पर 25 बसें ही चल रही हैं। कमजोर प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण धीरे-धीरे लोगों से यह सुविधा छिन रही है। शहरवासियों को सिटी बस अब दोबारा से सड़कों पर दौड़ती चाहिए। इसके लिए दैनिक जागरण अभियान शुरू कर रहा है।
आइए सबसे पहले जानते हैं कि क्या है सिटी बस सर्विस और शहर के लिए क्यों जरूरी है। कैसे इसे आपसी खींचतान में घाटे का सौदा दिखाकर बंदकर दिया गया और लोगों से एक अच्छी यातायात सुविधा को छीन लिया।
लुधियानवियों को बेहतर सार्वजनिक यातायात सुविधा देने के लिए वर्ष 2009 में केंद्र सरकार की मदद से सिटी बस सर्विस शुरू की गई। जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत 200 बड़ी व मिनी बसें खरीदनी थी। नगर निगम ने 65.20 करोड़ रुपये खर्च कर 200 में से 120 बसें ही खरीदी। शुरुआत में नगर निगम ने कांट्रैक्ट पर ड्राइवर व कंडक्टर रखकर खुद 20 बसों का संचालन किया। इसके बाद पुणे की एक कंपनी से बसें चलाने का अनुबंध किया। निगम को कंपनी को बसों के संचालन के लिए पैसा देना पड़ रहा था।
वर्ष 2014 में छह माह तक सिटी बस सर्विस बंद रही। 2015 में हारिजन ट्रांसवेज प्राइवेट लिमिट के साथ 83 बसों को चलाने का करार किया गया। 37 बसें नगर निगम के डिपो में ही खड़ी रही। कंपनी ने शुरुआत में सभी बसें शहर में चलाईं। कोरोना महामारी के कारण सिटी बस सर्विस को बंद किया गया। उस समय 11 में से छह रूटों पर सिटी बस चल रही थी। कोरोना के बाद अब कंपनी सिर्फ दो रूटों पर सिटी बस चल रही है। 83 में से मात्र 25 बसें इस वक्त चल रही हैं। सभी रूटों पर बसें चलाने को लेकर न नगर निगम ने दिलचस्पी दिखाई न कंपनी ने। कुल मिलाकर अब यह घाटे का सौदा बताया जाने लगा है और लोगों से आवाजाही का एक सस्ता, सुगम साधन छिन गया। 12 साल में सिटी बस सर्विस दम तोड़ गई और अधिकारियों व कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए।
सिटी बस सेवा पर एक नजर
1. सिटी बस के रूटों पर चल रहे आटो को ट्रैफिक पुलिस रोक नहीं पाई। आटो चालक सिटी बस के कर्मियों से मारपीट करते हैं। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है।
2. बसों के किराये का समय-समय पर आंकलन नहीं किया गया। यह समय के साथ बढ़ाना चाहिए था। सिटी बस सर्विस को मानिटर नहीं किया गया।
3. ताजपुर रोड डिपो में खड़ी सभी 37 बसें बड़ी हैं। इनकी लंबाई 42 फीट है। शहर के अंदर इन्हें चलाना संभव नहीं है। बाहरी रूटों पर पहले से बड़ी बसें चल रही हैं।