Kargil Vijay Diwas : शव पहुंचने के तीन दिन बाद मिली थी शहीद सिपाही संदीप की चिट्ठी, लिखा था- सब ठीक है, छुट्टी मिलते ही आऊंगा

Kargil Vijay Diwas बठिंडा के शहीद संदीप सिंह के पिता राठा सिंह भी सेना में थे। वह 1962 में सेना में भर्ती हुए थे लेकिन 1965 की जंग में जख्मी हो गए। इसके बाद 1966 में उन्हें अनफिट करार देते हुए रिटायर कर दिया गया।

By Vinay KumarEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 11:21 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 02:09 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas : शव पहुंचने के तीन दिन बाद मिली थी शहीद सिपाही संदीप की चिट्ठी, लिखा था- सब ठीक है, छुट्टी मिलते ही आऊंगा
Kargil Vijay Diwas : बठिंडा के सिपाही संदीप सिंह के पिता राठा सिंह जानकारी देते हुए। (जागरण)

बठिंडा [साहिल गर्ग]। Kargil Vijay Diwas : कारगिल युद्ध को 22 साल हो गए हैं, लेकिन उससे मिले जख्म अब भी भरे नहीं हैं। शहीदों के परिवार उनकी निशानियों में उनका जिंदा रखे हुए हैं। युद्ध के मैदान से लिखी गई उनकी चिट्ठियां उनके जख्मों को हरा कर देती हैं। आंखें भीग जाती हैं, लेकिन यही चिट्ठियां उनके जीने का सहारा भी हैं, जिन्हें वे सीने से लगाकर संजो कर रखे हुए हैं।

बठिंडा के एक परिवार पर उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, उन्हें सेना के जवानों से सूचना मिली कि आपका बेटा कारगिल युद्ध में शहीद हो गया है। यह दुख उस समय और बढ़ गया जब बठिंडा के सिपाही संदीप सिंह का पार्थिव शरीर पहुंचने के तीन दिन बाद उनका आखिरी खत घर पहुंचा। इसमें लिखा था- 'मैं जम्मू में कुशल-मंगल हूं। अब कारगिल में पोस्टिंग हो गई है। आप सब अपना ख्याल रखना। छुट्टी मिलते ही घर आऊंगा। सबको मेरी ओर से दुआ सलाम कहना।' यह चिट्ठी परिवार ने आज भी संभाल कर रखी है। जब भी संदीप की याद आती है तो परिवार चिट्ठी को पढ़ने लगता है और आंखों से आंसू बहने लगते हैं। शहीद संदीप सिंह के पिता राठा सिंह भी सेना में थे। वह 1962 में सेना में भर्ती हुए थे, लेकिन 1965 की जंग में जख्मी हो गए। इसके बाद 1966 में उन्हें अनफिट करार देते हुए रिटायर कर दिया गया। अपने पिता से प्रेरित होकर ही संदीप ने आर्मी ज्वाइन की थी।

शहीद बेटे के खत व सभी सर्टिफिकेट को अटैची में संभाल कर रखे हैं पिता राठा सिंह।

उनकी पहली तैनाती 1997 में धर्मशाला में हुई, जहां से वह जम्मू चले गए, जंग लगने से दो दिन पहले ही उनकी पोस्टिंग कारगिल में की गई। शहीद संदीप के पिता राठा सिंह बताते हैं कि जब बेटा शहीद हुआ तो आर्मी के कई अफसर उनके घर पर आए। उनको देखकर समझ गए थे कि कुछ अनहोनी हुई है। वह कहते हैं कि संदीप की यादों को आज भी उन्होंने अपने दिल में संजोकर रखा है। उनकी तस्वीरें देखकर और चिट्ठियां पढ़ कर तसल्ली कर लेते हैं। उनके सारे सर्टिफिकेट भी एक अटैची में संभालकर रखे हैं। पिता ने बताया, संदीप कहता था कि वह आर्मी में भर्ती होकर बड़ा नाम कमाएगा। अब तो यादें ही रह गई हैं। शहीद की याद में बठिंडा के परस राम नगर के चौक में सरकारी स्कूल का नाम संदीप सिंह सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल रखा गया। चौक पर प्रतिमा भी है। शहीद के घर को जाने वाली सड़क का नाम भी शहीद संदीप सिंह मार्ग रखा गया है। राठा सिंह बताते हैं कि वह संदीप की याद में हर साल 31 जुलाई को अखंड पाठ करवाते हैं, जिसका भोग दो अगस्त को डाला जाता है।

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