सबसे बड़ा ग्रह है परिग्रह : रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि मैत्री भाव जीवन प्रणाली को बदल देता है।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि मैत्री भाव जीवन प्रणाली को बदल देता है। जहर से अमृत की ओर जाने का मार्ग है मैत्री भाव। मैत्री भाव संसार से मुक्ति की ओर ले जाने का रास्ता है। आप जब चाहो, तभी चल सकते हो। किसी विशेष अवस्था की जरूरत नहीं होती। जहां प्रभु महावीर चले थे, वहीं पर हरिकेशी मुनि भी चले थे। इस राह का कोई भी राहगीर हो सकता है। इस प्रेम की पगडंडी पर चलने की शक्ति किसी के भी पास हो सकती है। बशर्ते उसके अंदर चलने की भावना, तमन्ना हो, प्रेम की पगडंडी केवल एक तरह की ही नहीं, कई तरह की है। कई रास्ते है- जैसे अनित्यता की भावना, जीवन की नश्वरता और आत्मा की अमरता की भावना, यही चलाती है प्रेम की राह पर। दूसरी राह है अपरिग्रह। अपरिग्रह को समझने के लिए परिग्रह को समझना बहुत जरूरी है। जिस तरह पुण्य को समझने के लिए पाप को समझना जरूरी है। धर्म को जानने के लिए अधर्म को जानना आवश्यक है। परिग्रह सभी ग्रहों का चाहे वह शुक्र ग्रह हो, शनि हो, मंगल हो, सभी ग्रहों का राजा है। महावीर का सिद्धांत कि शनि, मंगल, बुध, राहु, केतु आदि तभी हमारे ऊपर आक्रमण करते हैं जब हम परिग्रह के चंगुल में फंसे होते हैं। इस परिग्रह की वजह से हम कितने जन्म-मरण कर लेते हैं। अगर इन ग्रहों से बचना हो तो, एक ग्रह समझ लो। जो सबसे बड़ा ग्रह है वह है-परिग्रह।