सुख तो धन, वैभव से प्राप्त होता है : रचित मुनि

एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि संसार में यदि सुखपूर्वक जीना है। और आगे भी सुख की कामना है तो धर्म की शरण को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 17 Sep 2021 06:35 PM (IST) Updated:Fri, 17 Sep 2021 06:35 PM (IST)
सुख तो धन, वैभव से प्राप्त होता है : रचित मुनि
सुख तो धन, वैभव से प्राप्त होता है : रचित मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि संसार में यदि सुखपूर्वक जीना है। और आगे भी सुख की कामना है तो धर्म की शरण को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आप कहेंगे कि धर्म से मिलता क्या है? सुख तो धन, वैभव से प्राप्त होता है। धन से ही प्रसिद्धि, मान-सम्मान, अपार सुख व आराम चैन की नींद मिलती है। जबकि धर्म करने वाले बहुत से लोगों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती। सारा संसार धन के पीछे ही दीवाना है, तब धन ही तो सर्वोपरि हुआ ना। जब पास में धन होता है, तब धर्म का डंका खुद बजने लग जाता है। धनवान की हर जगह पूछ एवं कदर होती है।

बड़े-बड़े विद्वान तक धनवान के सामने नतमस्तक होकर उनका गुणगान करते रहते हैं। सत्ता में भी धनवानों का वर्चस्व बना रहता है। तो धर्म की शरण में जाकर करना क्या है? ऐसी सोच वाले लोग संसार में कम नहीं है, परंतु उनके अज्ञान व मूर्खता की निशानी है। हमें यह सोचना चाहिए कि धन, वैभव की जो प्राप्ति होती है, वह बिना धर्म के कभी नहीं हो पाती। पिछले जन्म में जो जीव जैसा पुण्य करके आया है, यानी जिसने धर्म को साध्य बनाया है, तप व ध्यान किया है, सत्संग प्रवचन सुने हैं, अच्छे लोगों की संगति कर चरित्रवान व दानवीर रहा है। माता-पिता व गुरुजनों की सेवा की है। गरीबों की दुआ एवं आशीष पाया है। परिवार के साथ शांति और प्रेम के साथ रहा है, इच्छाओं को सीमित कर इंद्रियों पर लगाम लगाई है, संयम व त्याग का जीवन जिया है, अहिसा करुणा दया को अपनाया है, मानवता का संदेश गुंजाया है, किसी को धोखा नहीं दिया है, अपनी भाषा मधुर पवित्र रखी है, जीवो को अभय दान दिया है तो- ऐसे लोगों को ही धन फिर खूब मिला करता है। भले ही इस भव में धर्म नहीं भी कर रहे है।

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