लोभ चित को कलुषित करता है : रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म .के सानिध्य में मधुर वक्ता रचित मुनि ने कहा कि पवित्रता शुचिता निर्मलता ये उत्तम शौच धर्म के पर्यायवाची शब्द है।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि म .के सानिध्य में मधुर वक्ता रचित मुनि ने कहा कि पवित्रता शुचिता, निर्मलता ये उत्तम शौच धर्म के पर्यायवाची शब्द है। शौच का अर्थ होता है शुद्धि - क्योंकि शुद्धि तन की ही नहीं, मन की भी बहुत जरूरी है ओर अध्यात्म की भी। धर्म की शरण लिए बिना मन शुद्ध नहीं हो सकता । कहते हैं कि तन को ही नहीं, मन को भी मांजना पड़ेगा। मन को मांजते रहने पर काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि जितने भी विकार हैं। वो विकार दूर होते चले जाएंगे ओर जिसने लोभ पर विजय पा ली। उसने इस संसार में सब कुछ पा लिया। लोभ चित को कलुषित करता है। चोरी, हत्या, झूठ सभी जितने भी कषायें कुविचार है। ये सब लोभ के वशीभूत आते हैं । लोभ आशा, तृष्णा, आसक्ति,अभिलाषा ये सब शब्द लोभ के ही पर्यायवाची शब्द कहे जाते हैं। देखिए कषाय तो चाहे कौन सा ही क्यों ना हो, वह अच्छा नहीं होता है। लोभ के विषय में परमात्मा महावीर फरमाते हैं कि -लोहो सव्व विणासणो- यानी लोभ सभी गुणों का नाश करने वाला होता है । और ये सच्चाई है कि लोभ के वशीभूत होकर आदमी क्या-क्या नहीं कर जाता। अपनी जाति, अपना कुल, अपनी सभी मर्यादाएं दांव पर लगा देता है। लोभ में व्यक्ति निरपराधी की हत्या तक भी कर देता है। कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है कि अतिलोभ यानी लालच के कारण व्यक्ति मार खाता है, दुखी होता है।। इसी दौरान श्री जितेंद्र मुनि ने कहा कि धर्म केवल किसी महापुरुष के नाम रटने से या माला फेरने से नहीं होता, वरन उस महापुरुष के संदेश यानी पवित्र वचनों को अपने जीवन में धारण करने से होता है।