बठिंडा मिनी सचिवालय पर किसानाें का कब्जा, कर्मचारियाें की एंट्री राेकी; DC काे MRS यूनिवर्सिटी से करनी पड़ी वीडियो कांफ्रेंस
Farmers Protest नरमे की खराब फसल के मुआवजा की मांग काे लेकर किसानों ने मिनी सचिवालय पर कब्जा जमा लिया है। दूसरे दिन भी मिनी सचिवालय के सभी गेटों पर किसानों ने धरना देकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।
जागरण संवाददाता, बठिंडा। Farmers Protest: नरमे की खराब फसल के मुआवजा की मांग काे लेकर किसानों ने मंगलवार काे मिनी सचिवालय पर कब्जा जमा लिया। दूसरे दिन भी सभी गेटों पर किसानों ने धरना देकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। मंगलवार को किसी मुलाजिम को मिनी सचिवालय में प्रवेश नहीं करने दिया। हालात यह हाे गई कि किसानों के विरोध के चलते सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के साथ इन्वेस्ट पंजाब को लेकर होने वाली वीडियो कांफ्रेंस भी डीसी अरविंद पाल सिंह संधू को महाराजा रणजीत सिंह यूनिवर्सिटी में करनी पड़ी।
हालांकि दफ्तरों में जाने वाले मुलाजिम अपने निर्धारित समय सुबह 9 बजे मिनी सचिवालय के बाहर पहुंच गए। लेकिन जब किसानों ने उनको अंदर नहीं जाने दिया तो वह काफी देर इंतजार करने के बाद वापस लौट गए। प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से अपने कामकाज को चलाने के लिए अलग-अलग दफ्तरों का सहारा लिया जा रहा है।
बठिंडा की महाराजा रणजीत सिंह यूनिवर्सिटी में डीसी अरविंद पाल सिंह संधू वीडियो कांफ्रेंस में शामिल होने के लिए पहुंचे।
वहीं किसानों की एक विजिलेंस विभाग के मुलाजिम के साथ बहसबाजी भी हो गई। वह मिनी सचिवालय की दीवार से दफ्तर का कंप्यूटर ले जा रहा था, जिसका किसानों ने विरोध कर दिया। इसके बाद मौके पर तैनात सब इंस्पेक्टर बलजीत सिंह ने किसानों को समझाया कि बाहर से मुलाजिम किसी कोर्ट का काम कर सकते हैं। इसके लिए वह उनका सहयोग करें। इस पर किसानों ने कहा कि अगर किसी को कोई चीज चाहिए तो वह किसान यूनियन के नेताओं के साथ संपर्क कर गेट से हासिल करे।
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चन्नी बठिंडा दौरे के दौरान कर चुके हैं मुआवजे का एलान
किसान नरमे की फसल का मुआवजा लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि सीएम चरणजीत सिंह चन्नी भी बठिंडा के गांवों का दौरा कर किसानों को मुआवजा देने का एलान कर चुके हैं। यहां तक जिस किसान के साथ फोटो खिंचवाई उसे भी मुआवजा नहीं मिला। शिअद प्रधान सुखबीर सिंह बादल की अगुआई में किसानों को नरमा की फसल का मुआवजा दिलाने के लिए रैली कर चुके हैं। किसानाें का आराेप है कि राजनीतिक दल अपने वादे पूरे नहीं कर पा रहे हैं।
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