लुधियाना की राजनीति में भी परिवारवाद हावी, कांग्रेस-शिअद और लिप के नेता ही चला रहे वंशवाद

देश की राजनीति में काफी समय से परिवारवाद का कब्जा रहा है। हालांकि चुनाव के दिनों में परिवारवाद का मुद्दा कई पार्टियों के नेता उठाते हैं।

By Edited By: Publish:Wed, 24 Apr 2019 08:00 AM (IST) Updated:Wed, 24 Apr 2019 09:44 AM (IST)
लुधियाना की राजनीति में भी परिवारवाद हावी, कांग्रेस-शिअद और लिप के नेता ही चला रहे वंशवाद
लुधियाना की राजनीति में भी परिवारवाद हावी, कांग्रेस-शिअद और लिप के नेता ही चला रहे वंशवाद

अर्शदीप समर, लुधियाना। देश की राजनीति में काफी समय से परिवारवाद का कब्जा रहा है। चुनाव के दिनों में परिवारवाद का मुद्दा नेता उठाते हैं लेकिन अधिकतर राजनीतिक पार्टियों में परिवारवाद काफी देर से चल रहा है। लुधियाना की राजनीति में भी परिवारवाद पूरी तरह से हावी है। चाहे वो अकाली दल हो या कांग्रेस, लोक इंसाफ पार्टी हो या फिर भाजपा। हर एक राजनीतिक पार्टी पर परिवारवाद की छाप साफ तौर पर दिखाई दे रही है।

चुनावी समर में परिवारवाद की बेल तेजी से पनपती है और नेता अपने परिवार वालों को प्रोत्साहित करने की कवायद में रहते हैं। इसमें सांसद रवनीत बिट्टू, कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु, विधायक सिमरजीत सिंह बैंस, विधायक कुलदीप वैद, पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह गाबड़िया, पूर्व कैबिनेट मंत्री सतपाल गोसाई समेत कई बड़े नेता शामिल हैं। यह नेता अपने परिवार के सदस्यों को आगे लेकर आए और अधिकतर नेताओं ने परिवार के सदस्यों को जीत भी हासिल करवाई। चाहे वह विधानसभा चुनाव हों या फिर पार्षद चुनाव। परिवारवाद का राजनीतिक पार्टियों में काफी जोर दिखा।

सांसद बिट्टू के चचेरे भाई हैं खन्ना से विधायक
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बेअंत सिंह के पोते एवं सांसद रवनीत सिंह बिट्टू भी परिवारवाद के चलते ही राजनीति में आए। यूथ कांग्रेस के प्रधान बनने के साथ श्री आनंदपुर साहिब से लोकसभा चुनाव लड़कर जीत हासिल की। फिर बिट्टू ने लुधियाना लोकसभा चुनाव से भी दूसरी बार जीत हासिल की। उनके चचेरे भाई गुरकीरत सिंह कोटली ने खन्ना से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बेअंत सिंह परिवार के तेज प्रकाश सिंह भी चुनाव लड़ चुके हैं और कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने थे।

कैबिनेट मंत्री आशु की पत्नी और चचेरा भाई है पार्षद
कांग्रेस सरकार के कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु ने पार्षद के दौरान पर राजनीतिक कैरियर शुरु किया था। आशु ने 2012 विधानसभा चुनाव जीता। इसके बाद आशु ने पत्नी ममता आशु और चचेरे भाई न¨रदर काला को पार्षद के चुनाव में उतार दिया जिसमें दोनों ने जीत हासिल की। 2017 में दूसरी बार फिर आशु ने विधानसभा चुनाव लड़ जीत हासिल की और कैबिनेट मंत्री बने। वहीं, आशु की पत्नी ममता और चचेरे भाई न¨रदर ने भी दूसरी बार पार्षद चुनाव लड़ जीत हासिल कर ली।

विधायक बैंस भाइयों ने दो विधानसभा पर किया कब्जा
लोक इंसाफ पार्टी के संयोजक एवं विधायक सिमरजीत सिंह बैंस ने भी पार्षद और जिला यूथ अकाली दल के प्रधान बन राजनीति में कदम रखा। सिमरजीत बैंस और उनके भाई बलविंदर सिंह बैंस 2012 में विधानसभा आत्मनगर और विधानसभा दक्षिण से आजाद चुनाव लड़े। इसमें दोनों भाईयों ने जीत हासिल की। दोनों भाइयों ने मिलकर टीम इंसाफ और लोक इंसाफ पार्टी भी बनाई। 2017 में विधायक सिमरजीत बैंस आत्म नगर और उनके भाई विधायक बलविंदर सिंह बैंस विधानसभा दक्षिण से दोबारा चुनाव लड़े और जीते।

पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह गाबड़िया का बेटा पार्षद
शिरोमणि अकाली दल-भाजपा सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे हीरा सिंह गाबड़िया का भी पार्टी में परिवारवाद हावी रहा। विधानसभा 2007 चुनाव में गाबड़िया ने चुनाव लड़ जीत हासिल की और कैबिनेट मंत्री बने। इसके बाद गाबड़िया ने 2012 और 2017 में फिर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसी दौरान गाबड़िया ने अपने बेटे रखविंदर सिंह गाबड़िया को नगर चुनाव में उतार दिया और जिसमें उन्होंने जीत हासिल की।

विधायक कुलदीप वैद का बेटा दुगरी से पार्षद
मोगा के डीसी पद से रिटायर्ड होने के बाद 2017 में कुलदीप सिंह वैद विधानसभा गिल से कांग्रेसी की सीट से चुनाव लड़े। इस दौरान कुलदीप सिंह वैद ने जीत हासिल कर ली। विधायक बनने के बाद कुलदीप सिंह वैद ने अपने बेटे हरकरण सिंह वैद को भी राजनीति में उतारा। उसके बाद नगर निगम चुनाव में हरकरण सिंह वैद को चुनाव में उतार दिया। हरकरण सिंह वैद ने दुगरी से चुनाव लड़ जीत हासिल की।

पूर्व कैबिनेट मंत्री गोसाई के रिश्तेदार को मिली टिकट
भाजपा के वरिष्ठ नेता सतपाल गोसाई शिअद-भाजपा सरकार में दो बार डिप्टी स्पीकर और एक बार कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। विधानसभा 2012 में गोसाई को विधायक सुरिंदर डावर से हार का मुंह देखना पड़ा था। उसके बाद से गोसाई और उनके रिश्तेदार गुरदेव देबी के साथ रिश्तों में खटास आ गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में गोसाई की टिकट को कटवा कर उनके ही रिश्तेदार गुरदेव ने टिकट ली। लेकिन देबी को भी डावर से हार का मुंह देखना पड़ा था।

पार्षद की सीटों पर भी परिवारवाद है हावी
शहर में पार्षदों की सीटों पर भी परिवारवाद काफी हावी है। अधिकतक सीटों में एक ही परिवार के सदस्य लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। नेता जब भी सीट महिला के लिए रिजर्व होती है, तो वह राजनीतिक पार्टियों पर दबाव बनाकर अपनी पत्नी के लिए टिकट ले आते हैं। परिवारवाद के चक्कर में पार्टियों को उनके ही घर के सदस्यों को लगातार टिकट देनी पड़ती है। जिसके चलते पार्षद सीटों पर भी परिवारवाद काफी हावी है।
 

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