लाला जी कहिन: बिजली बिलों ने बढ़ाई धड़कनें, गणित समझने में लोग नाकाम

काम में मंदी झेल रहे लोगों के बिजली का बिल देखकर होश उड़ गए हैं। पभोक्ताओं को समझ नहीं आ रहा कि बिल में कितना टैक्स क्या बकाया जोड़ा गया है।

By Vikas_KumarEdited By: Publish:Fri, 21 Aug 2020 10:34 AM (IST) Updated:Fri, 21 Aug 2020 10:34 AM (IST)
लाला जी कहिन: बिजली बिलों ने बढ़ाई धड़कनें, गणित समझने में लोग नाकाम
लाला जी कहिन: बिजली बिलों ने बढ़ाई धड़कनें, गणित समझने में लोग नाकाम

लुधियावा, [राजीव शर्मा]। कोरोना महामारी के कारण सैकड़ों लोग आर्थिक दिक्कतों में घिरे हुए हैं। कोई बैंक लोन की किस्तों को लेकर तो कोई बच्चों की स्कूल फीस को लेकर दबाव में है। ये सब तो ठीक, अब पावरकॉम ने फिर से उपभोक्ताओं को भारी भरकम बिल थमा दिए हैं। बिल देखकर लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। उपभोक्ताओं को समझ नहीं आ रहा कि बिल में कितना टैक्स, क्या बकाया जोड़ा गया है। वे एक-दूसरे के पास जाकर बिल का गणित समझने में लगे हैं या फिर पावरकॉम दफ्तरों में पता कर रहे हैं। घंटाघर स्थित कारोबारी मुकेश कुमार के शोरूम का बिजली बिल सामान्य के मुकाबले दस गुणा अधिक आ गया। पहले ही काम में मंदी और ऊपर से इतना बिल देखकर तो उनके होश ही उड़ गए। कहते हैं, इस बार तां बिजली बिलां ने वट्ट ही कड्ड दित्ते। राहत दी उम्मीद सी पर सब पानी फिर गेया।

गायब बिचौलियों को ढूंढ रहे केमिस्ट

दवा मार्केट के कारोबार का एक हिस्सा बिचौलियों यानी दो पर्सेंटियों के इर्द-गिर्द घूमता है, लेकिन दवा के होलसेल व्यापारी इन्हेंं ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं। ये बिचौलिए होलसेल विक्रेताओं से दवाइयां उठाकर लोकल या फिर दूरदराज के छोटे मेडिकल स्टोरों को पहुंचाते हैं। इसके लिए वे उनसे दो फीसद कमीशन वसूलते हैं। कहीं न कहीं इसका मेडिकिल स्टोर संचालकों को लाभ भी होता रहा है मगर इन दिनों पिंडी स्ट्रीट से बिचौलिए गायब हैं। इसका असर दवा मार्केट की बिक्री पर भी दिखने लगा है। होलसेल विक्रेता जिन बिचौलियों को पहले कभी ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे, वह इन दिनों उनकी बाट जोह रहे हैं। कई दवा कारोबारी तो उनको फोन भी कर रहे हैं मगर कोरोना के कारण वह नहीं आ रहे हैं। इससे दूरदराज के मेडिकल स्टोरों को भी दवाइयां मंगवाने में दिक्कत हो रही है। आखिर उन्हेंं इस संकट में उनका महत्व समझ आ ही गया।

माल बनाने और भेजने में छूटे पसीने

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच उद्योग का पहिया घूमने जरूर लगा है, लेकिन अब भी उत्पादन रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा। उद्यमियों को पहले तो माल बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल नहीं मिल रहा है। यदि इस कमी को दूर कर भी लिया जाए तो आगे तैयार माल को दूसरे राज्यों में भेजना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। पहले रोजाना रेलवे स्टेशन से दो सौ ट्रेनें चलती थीं और माल दिनभर जाता रहता था और दो-तीन दिन में पहुंच जाता था। अब केवल चार ट्रेनें चल रही हैं। सुंदर नगर स्थित होजरी उद्यमी अमित कुमार भी इससे खासे प्रभावित हैं। वह कहते हैं कि कोरोना ने पूरा सिस्टम ही बेपटरी कर दिया है। माल बनाना भी मुश्किल और उसे भेजने में भी पसीने छूट रहे हैं। अब तो यही दुआ है कि जल्द कोरोना संक्रमण खत्म हो और फिर से स्थिति सामान्य हो जाए।

बसों की कमीशन पर सभी की नजर

कोरोना काल के आरंभ में लुधियाना छोड़कर अपने पैतृक गांवों को लौट चुके श्रमिक फिर से काम की तलाश में औद्योगिक शहर की ओर रुख करने लगे हैं। उद्योगों में भी श्रमिकों की शॉर्टेज चल रही है। ऐसे में उद्यमी श्रमिक नेताओं के संपर्क में आकर लेबर की व्यवस्था करने में जुटे हैं। बिहार व उत्तर प्रदेश में पहचान होने के कारण यह नेता बाकायदा पहले श्रमिकों को जमा करते हैं। इन दिनों ट्रेनें नाममात्र ही चल रही हैं, ऐसे में बसों में लेबर को लाया जाता है। इसमें इन नेताओं की अच्छी खासी कमीशन भी बन जाती है। बिहार से लेबर लाने वाले एक श्रमिक नेता ने बताया कि इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है, तब जाकर लेबर को बिहार से लुधियाना लाया जाता है। अब अन्य नेताओं को उनकी कमीशन खल रही है, इसलिए बस आते ही वह भी पहुंच जाते हैं और हिस्सा मांगने लगते हैं।

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